देश भर में बच्चियों के साथ यौन-अपराध की औसतन पांच घटनाएं हर रोज सामने आ रही हैं। जो प्रकाश में नहीं आ रहीं, वे न जाने कितनी होंगी। दो साल पहले यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए एक कानून बनाया गया था- प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस, यानी पोक्सो। यह कानून बलात्कार तक सीमित नहीं है। कानून की धारा तीन बलात्कार केअतिरिक्त किए जाने वाले यौन-अपराधों पर लगती है, जिसमें सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। अगर धारा तीन का अपराध कोई पुलिसकर्मी, सैनिक, अर्धसैनिक, जन-प्रतिनिधि, रिमांड होम का स्टाफ, जेल कर्मचारी, अस्पताल कर्मचारी, स्कूलकर्मी करता है, तो उसे आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। सबसे सख्त प्रावधान यह है कि केस दर्ज होने के बाद अभियुक्त आरोपी नहीं, अपराधी माना जाता है। लेकिन इतना सख्त कानून होने के बावजूद बच्चों से यौन अपराध की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं? सबसे बड़ा कारण है पुलिस तंत्र की लापरवाही।
ज्यादातर राज्यों में पुलिस बच्चों से होने वाले यौन अपराधों को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही है। पुलिस को इस कानून के बारे में प्रशिक्षित नहीं किया गया है। पिथौरागढ़ में तीन लड़कियों ने अपने स्कूल के प्रबंधक के खिलाफ पुलिस में शिकायत की। शिकायत सही पाई गई। प्रबंधक को गिरफ्तार कर लिया गया। अब पहला काम था कि बच्चियों की मेडिकल जांच कराई जाती और 164 के अंतर्गत बयान दर्ज किए जाते। लेकिन बच्चियों के माता-पिता बयान दर्ज कराने को राजी न हुए। कानून की अनभिज्ञता का यह एक बड़ा उदाहरण है। जरूरत इस बात की है कि इस कानून का न सिर्फ प्रचार-प्रसार किया जाए, बल्कि ऐसे हर मामले पर तुरंत पोक्सो लगाया जाए। इस कानून में पुलिस के पास ज्यादा अधिकार नहीं हैं। उसे शिकायत मिलने पर तुरंत एफआईआर दर्ज करनी होगी। पुलिस की आदत है कि वह पहले जांच करती है और उसके बाद एफआईआर दर्ज करती है। ऐसी आदतों को बदलकर ही बच्चों को यौन शोषण से बचाया जा सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) – See more at: