केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बिल का जो ड्राफ्ट तैयार किया है उसके अंतर्गत देश भर से ड्रग इंस्पेक्टरों का पद ख़त्म हो जाएगा,उसकी जगह ड्रग कंट्रोलर अधिकारियों के पद सृजित किये जायेंगे।गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में नसबंदी के दौरान 18 महिलाओं की मौत हुई थी,राज्य सरकार का मानना है कि इन मौतों की वजह दवाओं में मिली अशुद्धियाँ थी ।
नए कानून के तहत कई श्रेणियों में दवाओं के लाइसेंस देने के अधिकार केन्द्रीय एजेंसियों को देना प्रस्तावित है। इसके अलावा दवाओं और कास्मेटिक पदार्थों में किसी प्रकार की मिलावाट पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। प्रस्तावित संशोधन में एक नया शेड्यूल लाया जाएगा, जिसके तहत एंटी-टाक्सिन, एंटीजन, प्लाज्मा, कैंसर में प्रयुक्त होने वाली दवाएं आदि के लाइसेंस केन्द्रीय एजेंसियों के मार्फ़त ही मिलेंगे। इसके अलावा अन्य दवाओं की लाइसेंसिंग प्रक्रिया को भी और मजबूत किया जाएगा। सरकार दवाओं में किसी प्रकार की गड़बड़ी मिलने पर दी जाने वाली सजा और जुर्माने की राशि भी कई गुना बढाने पर विचार कर रही है ।
प्रस्तावित संशोधन के तहत केंद्र सरकार औषधि तकनीकी एडवायजरी बोर्ड का भी नए सिरे से पुनर्गठन और इसमें राज्य सरकार के प्रतिनिधियों की नियुक्ति भी केंद्र सरकार के माध्यम करना चाहती है। इसमें फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और फार्मास्युटिकल उद्योगों के प्रतिनिधि और दवा के क्षेत्र में काम कर रहे विद्वान भी होंगे। इसी तरह से मेडिकल उपकरणों के लिए भी चिकित्सा उपकरण औषधि तकनीकी एडवायजरी बोर्ड का भी गठन किया जाएगा ।सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि दवाओं के उत्पादन पर निगरानी रखने के लिए राज्य और केंद्र सरकार मिलकर एक परामर्श कमेटी भी बनाएंगे, जो औषधि उत्पादन के क्षेत्र में रेगुलेटरी बोर्ड की तरह काम करेगी।
भारत सरकार के ड्रग कंट्रोलर जनरल जी एन सिंह प्रस्तावित संशोधित बिल के बारे में कहते हैं कि इसके पारित होने के बाद निश्चित तौर पर दवा उत्पादन, वितरण पर केंद्र सरकार की निगरानी बढ़ेगी, अच्छे लोग आयेंगे और गलत लोग खुद ही बाहर चले जायेंगे। वे कहते हैं कि हमें यह कहने में कोई आपत्ति नहीं है कि छत्तीसगढ़ की घटना के बाद ऐसा करना जरुरी था।
डॉ सिंह के मुताबिक इस संशोधन के बाद देश में मेडिकल उपकरणों का निर्यात बढेगा, उनकी गुणवत्ता पर भी उचित निगरानी रखी जा सकेगी। क्लिनिकल ट्रायल कड़ी निगरानी में ही संभव होगा, साथ ही ट्रायल में भाग लेने वालों को समुचित अधिकार दिए जाएंगे। गौरतलब है कि देश में अब तक दवाओं के उत्पादन वितरण और उनकी गुणवत्ता पर निगरानी रखने के लिए अंग्रेजो के समय बनाए गएकानून ड्रग और कास्मेटिक एक्ट -1940 की मदद ली जाती है।