1953 में केरल के कोझिकोड में जन्मीं अंजना राजगोपालन के पिता पीके राजगोपालन खदान कंपनी में मैनेजर थे। चार भाई और तीन बहनों में तीसरे नंबर की अंजना केवल 10वीं तक ही शिक्षा पा सकीं। मां की मौत और उसके बाद भाई की मौत ने अंजना को तोड़ दिया और वह पिता के साथ दिल्ली आ गईं। वह मौसी के यहां रहीं। दिल्ली में एक निजी कंपनी में नौकरी भी की। नोएडा में उस समय कम किराए पर रहा जा सकता था, इसलिए दिल्ली से यहां आ गईं।
इसी बीच सांई कृपा के नाम से संस्था का गठन कर सेक्टर-12 में अनाथालय खोल लिया। अंजना बताती हैं कि 1988 की बात है। एक दिन बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित प्यारे लाल भवन के पास कुछ लोग एक बच्चे को पीट रहे थे। यह सब देखा नहीं गया और वह उसको घर ले आईं। नाम रजत रखा। यह सबसे पहला बच्चा था जिसे अपने किराए के मकान में रखा। इसकी जानकारी पुलिस को भी दी। इसके बाद तो अनाथ बच्चों के आने का सिलसिला शुरू हो गया, जो जारी है।
बच्चों को शिक्षित करने के लिए उन्होंने जनसहयोग से एक स्कूल की स्थापना कराई। अनाथ बच्चे बस से इसमें पढ़ने जाते हैं। यहां इनको 12वीं तक की शिक्षा दी जाती है। इसके बाद दूसरे कॉलेजों में जाना पड़ता है। अंजना किसी से पैसा मांगने नहीं जाती हैं। कई बार काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अब लोग स्वेच्छा से मदद करते हैं।
अंजना यहां रहने वाले सभी बच्चों की मां हैं। सभी मां कहकर पुकारते हैं। यहां रहे कई बच्चों के परिवार बस गए हैं और वह दादी और नानी भी बन गईं हैं। पर सबसे पहले वह चार सौ से अधिक बच्चों की मां ही हैं।