ग्राम सुस्तीपुरा की आबादी करीब एक हजार है। यहां एक स्वयंसेवी संस्था ने इन महिलाओं को प्रेरणा दी और उन्होंने वह काम कर दिखाया जो एक मिसाल बन गया है। गांव की 12 आदिवासी महिलाओं ने मिलकर मां जगदंबा नहर विकास समिति का गठन करीब दो साल पहले किया था। शुरुआत में तो यह नहीं समझ आया कि क्या उद्यमिता की जाए लेकिन छोटी-छोटी बचत करके राशि एकत्रित की और फिर केंचुआ पालन करके अपनी ही खेती सुधारने की कोशिश में जुट गई। इनके हौसले को देखकर सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट मुंबई द्वारा सहयोग दिया गया।
गुजरात से सीखी उद्यमिता
इन महिलाओं ने गुजरात के कुछ ग्रामों का भ्रमण किया। जहां देखा कि किस तरह महिलाएं पुरुषों से भी आगे काम कर रही हैं। समूह की प्रमुख खजरीबाई और शांतिबाई टैगोर ने बताया कि वहां महिलाएं न केवल खाद से अपने खेत सुधार रही थीं बल्कि पैसा भी कमा रही थी। यहीं से हमने भी प्रेरणा ली।
तकनीक को भी अपनाया
हालांकि ये आदिवासी महिलाएं निरक्षर और अनपढ़ हैं फिर भी गुजरात की महिलाओं से प्रेरणा लेकर लौटते ही केंचुआ पालन के लिए कार्य शुरू किया। इसके लिए बकायदा इन्होंने गोबर का किस तरह से खाद बने उसके लिए बेड यानी प्लेटफार्म बनाकर तैयारी शुरू की। सबसे बड़ी बात यह थी कि बचत की राशि से उन्होंने केंचुए खरीदे।
ये महिलाएं कुछ क्विंटल खाद बनाकर हार जाएंगी, पहले ऐसा सोचा गया था किंतु आज 120 क्विंटल खाद का ढेर लगाकर इन्होंने साबित कर दिया कि हौसलों की कभी हार नहीं होती। नए साल में इन महिलाओं का संकल्प है कि अब खाद के इस ढेर को पहाड़ में बदलेंगी और खाद बाजार में बेचकर समूह और उससे जुड़ी हुई महिलाओं की आर्थिक तरक्की की राह मजबूत की जाएगी।