कांग्रेस नेता ने अधिनियम में संशोधन के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाने पर भी सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा कि राजग सरकार को विधेयक को राज्यसभा में पेश किए जाने के दौरान कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। राज्यसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन के पास पर्याप्त संख्या नहीं है। रमेश ने 2013 में नया भूमि अधिग्रहण कानून बनाए जाने में अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने संवाददाताओं से यहां कहा कि सहमति के प्रावधान को त्यागकर आप जबरन अधिग्रहण के द्वार खोल रहे हैं। मेरी राय में किसी भी परिस्थिति में जबरन अधिग्रहण से परहेज किया जाना चाहिए। अधिनियम में महत्त्वपूर्ण बदलाव के साथ अध्यादेश जारी करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल की अनुशंसा के एक दिन बाद रमेश ने कहा कि सामाजिक प्रभाव आकलन को त्यागकर आप जो कर रहे हैं, वह यह है कि आप भूमि का दूसरे काम में इस्तेमाल किए जाने के लिए द्वार खोल रहे हैं जैसा उत्तर प्रदेश में किया गया। वहां भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया गया और निजी बिल्डरों को सौंप दिया गया। आप अत्यधिक भूमि का अधिग्रहण करने के भी द्वार खोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 60 बरसों का अनुभव है कि आप हमेशा अत्यधिक भूमि का अधिग्रहण करते हैं और उस अत्यधिक भूमि पर आप बैठ जाते हैं। नए अधिनियम में कहा गया था कि आप उस जमीन को लेकर पांच साल से अधिक समय तक नहीं बैठ सकते।
अब अध्यादेश कहता है कि आप इसे 10 साल तक लेकर बैठ सकते हैं। बुनियादी तौर पर आप 1894 के अधिनियम की ओर बढ़ रहे हैं। जबरन अधिग्रहण संभव होता है और दरअसल यह होगा। सार्वजनिक उद्देश्य के लिए ली गई जमीन का गैर सार्वजनिक उद्देश्य में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह उसके द्वार खोलेगा। अत्यधिक भूमि का अधिग्रहण किया जाना अब हकीकत बनेगा।
रमेश ने कहा कि अध्यादेश काफी निराशाजनक है। यह राज्यसभा में वातावरण को दूषित करता है। उन्होंने कहा- मैं नहीं देख सकता कि कैसे कांग्रेस पार्टी, माकपा, जद (एकी), तृणमूल अधिनियम की सामग्री का कैसे समर्थन करेंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्वदलीय बैठक बुलाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। विपक्ष तक पहुंचने की कोई कोशिश नहीं की गई।