स्कूल के प्रमुख प्रोफेसर जयंत भट्टाचार्य ने कहा कि अभी पर्यावरण इंजीनियरों की मांग काफी ज्यादा है. वे केवल कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) अभियान का ही हिस्सा नहीं बल्कि वे कंपनी के विकास के वाहक हैं और लागत घटाकर मुनाफा बढाते हैं.
पाठ्यक्रमों में पर्यावरण मुद्दों के इंजीनियरिंग समाधान पर फोकस होगा. इसके तहत खनन, रासायनिक सीमेंट, खाद्य प्रसंस्करण, धातु उद्योग संबंधी आदि क्षेत्रों के बडे-बडे उद्योग आते हैं. भट्टाचार्य ने कहा, ‘उद्योगों के लिए पर्यावरण मंजूरी में देरी अब एक बडी बाधा बन गयी है.
इसलिए संसाधनों के प्रभावशाली इस्तेमाल, अपशिष्ट प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण की समस्या के समाधान की जरुरत है. हमारे पर्यावरण इंजीनियर इन सब मुद्दों से निपटने के लिए प्रशिक्षित होंगे.’ अनुमान है कि भारतीय उद्योगों को करीब 10,000 पर्यावरण इंजीनियरों की जरुरत है और विशेषीकृत कार्यबल के अभाव में रासायनिक इंजीनियरों को दोहरी भूमिका निभानी पडती है.