बालिकाओं में गुमला की आठ, सिमडेगा की पांच, बोकारो की एक, पश्चिमी सिंहभूम की तीन, पूर्वी सिंहभूम की एक, साहेबगंज की चार, लोहरदगा की एक, सरायकेला की एक, गढ़वा की एक एवं रांची की एक बच्ची शामिल हैं. बाल संरक्षण आयोग के सदस्य संजय मिश्र ने बताया कि इनको झारखंड लाने के लिए बाल कल्याण समिति दिल्ली, दिल्ली पुलिस और झारखंड भवन के साथ एक सप्ताह तक कैंप किया गया. इनको अब बिजूपाड़ा स्थित किशोरी निकेतन में रख उन्हें उनके घर तक पहुंचाया जायेगा. बालिकाओं को संघ की परियोजना समन्वयक अनीमा बाड़ा , सूरजमुनी कुमारी, सेम कराइत एवं अमर कुमार ने लाया.
अपनो ने ही धोखा दिया
जब बच्चियों से बात की गयी, तो उन्होंने बताया कि उन्हें धोखे से घरवाले व रिश्तेदारों ने ही बेच दिया है. उन्हें बताया गया कि दिल्ली घुमाने व अच्छे काम के लिए ले जाया जा रहा है, पर सच्चई यह थी कि वे वहां जाकर बेची जा चुकी थीं. घरों में दाई का काम करने को मजबूर किया गया. इनमें से कई लड़कियों को गलत धंधे में धकेल दिया गया. बच्चियों ने बताया कि किसी तरह उन्हें चाइल्ड हेल्पलाइन व पुलिस के संपर्क में आने से वापस झारखंड आने की राह मिली. अब ये बच्चियां दिल्ली के नाम से भी डरती हैं. उनका कहना है, जीवन में कभी दिल्ली नहीं जायेंगी.
मुझे मेरे पिता ने ही बेच दिया
साहेबगंज की रीत (बदला हुआ नाम ) ने बताया : मेरे बाबा (पिता) ने हम दो बहनों को एक बिचौलिये के हाथों बेच दिया. दोनों बहनें एक साथ दिल्ली तो गयीं, पर यहां आते ही बिछड़ गयीं. बहन को किसी कोठी (बड़ा घर) में काम लगा दिया गया और मुङो दूसरे घर में. बाबा ने कहा था कि हम दोनों को दिल्ली के अच्छे ऑफिस में काम मिल गया है, पर वहां जाकर जूठन धोना पड़ा. जानवरों-सा सलूक हुआ. हम दोनों बहनों के गले में गोदना था. संस्थावालों ने गोदना देख बताया कि एक ऐसी ही गोदनावाली लड़की को हमने उसके घर तक पहुंचाया है. नाम पूछने पर वह मेरी ही बहन निकली. मुझे खुशी है कि आज वह वापस घर में है और मैं अब अपने घर जा सकूंगी.
बहनोई ने बेचा, दिया धोखा
गुमला की नीर (बदला हुआ नाम ) ने बताया मेरे मां-बाबा नहीं हैं. इसलिए दीदी व बहनोई ही मेरे सहारा थे. एक दिन बहनोई ने मुङो धोखे से अपने भाई के साथ दिल्ली घुमाने भेज दिया. वहां पर बहाने बना कर मुङो एक कोठी में बेच दियागया. वहां मुझसे सारा दिन दाई का काम कराया गया. भरोसा करूं तो किस पर, मेरे अपनों ने ही मुङो बेच डाला. मैं सातवीं क्लास तक पढ़ी थी, इसलिए मुङो चाइल्ड हेल्पलाइन का पता था. किसी भले पड़ोसी ने पुलिस से संपर्क कराया और आज मैं वापस अपने घर आ पायी हूं.
सगे चाचा-चाची ने मुङो बिचौलिये के हाथों बेच दिया
रांची की सीमा (बदला हुआ नाम ) ने बताया कि मेरे माता-पिता नहीं हैं. चाचा-चाची मुङो बोझ समझते थे. उनकी नीयत खराब थी. मुझसे छुटकारा पाने के लिए एक बिचौलिये के हाथों मुङो बेच दिया. इस तरह उनको मुझसे मुक्ति मिल गयी और पैसे भी मिले. वह दलाल मुङो दिल्ली ले गया. वहां मुझसे एक कोठी में काम कराया गया. दिन-रात काम कराया जाता था. मैं पढ़ना चाहती थी, पर किस्मत ने मुङो झाड़ू, बरतन धोने पर मजबूर कर दिया. अब दिल्ली कभी नहीं जाऊंगी. मौका मिला, तो मैं अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए अवश्य प्रयास करूंगा.