राजस्थान के 25 में से 20 सांसदों ने गोद लिए अपनी ही जाति के गांव

जयपुर। सांसद अपना स्टाफ और पीए चुनने में ही नहीं बल्कि गांव गोद लेने में भी जाति देखते हैं। राज्य के 25 में से 20 सांसदों ने उन्हीं गांवों को गोद लिया है जिनमें उनकी खुद की जाति की आबादी ज्यादा है।

भास्कर ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत लोकसभा सांसदों की ओर से गोद लिए गए गांवों की पड़ताल की तो उसमें जातिगत प्रेम का यह अनूठा मामला सामने आया। जो सांसद अपनी जाति के गांव नहीं चुन पाए उसके पीछे का सच भी निराला है। किसी ने परंपरागत वोट बैंक के आधार पर गांव को गोद ले लिया तो किसी ने नजदीकी गांव के विकास का जिम्मा ले लिया। अल्पसंख्यक आबादी बहुल गांवों को गोद लेने में एक भी सांसद ने दिलचस्पी नहीं ली। हालांकि, श्रीगंगागनर सांसद निहालचंद मेघवाल और झालावाड़-बारां सांसद दुष्यंत सिंह की ओर से गोद लिए गए गांवों में मुस्लिम आबादी अच्छी तादाद में है।

जातिगत आबादी की यह पड़ताल पटवारियों की रिपोर्ट के आधार पर की गई है। दौसा सांसद हरीशचंद्र मीणा ने तो दौसा की जगह जयपुर की नजदीकी बाडा-पदमपुरा ग्राम पंचायत को गोद लिया है जो एसटी आबादी बहुल है।

यहां जाति नहीं पर वोट बैंक बना आधार

भरतपुर सांसद ने जाट बहुल पथेना ग्राम पंचायत को गोद लिया है। यहां 75 फीसदी जाट आबादी है। यह पंचायत पहले से विकसित है। नागौर सांसद सीआर चौधरी ने नावां तहसील की चावंडिया ग्राम पंचायत को गोद लिया है जो राजपूत आबादी बहुल है। भाजपा का परंपरागत वोट बैंक है। जालौर सांसद देवजी पटेल ने सांचोर तहसील का होतीगांव गोद लिया है। इस गांव में सबसे ज्यादा आबादी एससी की कोली और एसबीसी की रैबारी समुदाय की है। कोटा सांसद ओम बिड़ला ने सांगोद तहसील की ढोटी ग्राम पंचायत को गोद लिया है जिसमें वैश्य आबादी नहीं है।

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