यह मामला लगभग बीस साल पुराना है। जून 1995 में पत्नी अपने पति के घर को छोड़कर चली गई थी। तब जुलाई 1995 में पति ने शादी में समझौते की कोई गुंजाइश न होने की बात कहकर तलाक का मुकदमा दायर किया था। पत्नी को जब पता चला तो उसने बदला लेने के लिए पति और उसके परिवार के सात सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न संबंधी धारा समेत विभिन्न धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। पत्नी की शिकायत पर पुलिस ने पति और उसके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार किया था। उन्हें जेल भी हुई थी। सन् 2000 में हैदराबाद की एक अदालत ने इस मामले में पति और उसके परिवारवालों को बरी कर दिया था। इससे पहले 1999 में परिवार अदालत ने दोनों में तलाक को मान्यता दे दी थी। पत्नी की याचिका पर हाईकोर्ट ने तलाक को मान्यता नहीं दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने पत्नी की शिकायत को भी ठीक नहीं माना था। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि पति की तलाक की अपील के बाद पत्नी ने सोची-समझी रणनीति के तहत पति और उसके घरवालों के खिलाफ झूठी शिकायत की थी, जो तलाक के लिए पर्याप्त आधार है।
यह मामला इकलौता नहीं है। धारा 498ए को सुप्रीम कोर्ट कानूनी आतंकवाद तक कह चुका है। अकसर अपने परिवारवालों के दबाव तथा बदला लेने की भावना से इस धारा के अंतर्गत मुकदमे दर्ज कराए जाते रहे हैं। कई लोगों ने बताया कि बहुत-से मामलों में इस धारा के अंतर्गत साठ-सत्तर लोगों तक के नाम लिखवा दिए गए। यही नहीं, विदेशों में रहने वाले लोगों तक के नाम लिखवा दिए जाते हैं। कई मामलों में परिवार के अनेक सदस्यों को इतना धक्का पहुंचा कि ऐसी शिकायत सुनते ही उनकी मौत भी हो गई। बहुत-से लोगों की जमीन-जायदाद बिक गई। समाज में बदनामी हुई सो अलग। यही नहीं, आजकल दूरदराज के गांवों-कस्बों में बहुत-से ऐसे गिरोह भी सक्रिय हैं, जो किसी आदमी की माली हालत देखकर उसे अपने जाल में फंसाते हैं, शादी कराते हैं। फिर कुछ ही दिनों में ससुरालवालों के खिलाफ 498ए के अंतर्गत केस दर्ज करा दिया जाता है। लड़के वाले जैसे-तैसे लाखों देकर अपनी जान छुड़ाते हैं। यही कारण है कि हाल ही में अदालत ने कहा था कि दहेज उत्पीड़न संबंधी मामलों में सिर्फ आरोप लगाने से पुलिस किसीको गिरफ्तार न करे।
कितने अफसोस की बात है कि समाज में दहेज का दानव रात-दिन मुंह फैला रहा है। बढ़ती टेक्नोलॉजी और उपभोक्ता वस्तुओं और उनसे जुड़ी स्टेटस सिंबल की अवधारणा ने उसे हजारों गुना बढ़ाया है। हमारे यहां भ्रूण हत्या का बड़ा कारण दहेज माना जाता है। ऐसे में जब दहेज के खिलाफ कठोर कानून बनाया गया था तो स्त्रीवादी समूह बहुत खुश हुए थे। हम लोगों को लगता था कि अब किसी लड़की की स्टोव फटने से जान नहीं जाएगी। आखिर किसी लड़की को जलाने के बाद स्टोव फटने का बहाना बनाकर ससुराल वाले बचने की कोशिश करते थे। लेकिन इस धारा से जो सताई गई लड़कियां थीं, जिन्हें लालची ससुराल वालों के कारण जान गंवानी पड़ी थी, उन्हें शायद ही न्याय मिला, दो-चार मामलों को छोड़कर। दूसरी ओर ये धारा लालची लोगों का हथियार बन गई, जो कठोर कानून की आड़ में पैसा वसूलने लगे। पीड़िताओं की आवाज, उनकी तकलीफ पीछे रह गई। कुछ औरतों व उनके इर्द-गिर्द एकत्रित असामाजिक तत्वों की बन आई। उनके लिए पैसा कमाने का यह अचूक हथियार बन गया।
पिछले दिनों यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म की झूठी शिकायतों के बारे में भी अदालतें बार-बार चेतावनी दे रही हैं। ये कानून भी कठोर हैं। बहुत हद तक एकपक्षीय भी। एक बार अगर किसी पुरुष का नाम ऐसे मामले में लगा दिया जाए तो उसका छूटना मुश्किल होता है। इसीलिए इस तरह के मामलों की बाढ़-सी आ गई है। पुलिस की मानें तो दुष्कर्म के मामलों में दस में से चार झूठे होते हैं। भारतीय समाज की हालत देखिए कि एक ओर छह माह की बच्ची से लेकर अस्सी साल की बुढ़िया तक दुष्कर्म के हमलों से नहीं बच पाती। असंगठित क्षेत्र और संगठित क्षेत्र, दोनों में औरतों को यौन हमलों का सामना करना पड़ता है। लेकिन कैसी मजबूरी है कि असली पीड़ित महिलाएं त्राहि-त्राहि करती हैं और धूर्त लोग कानून का दुरुपयोग करते हैं। इसमें वे औरतों को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। कितने मामलों में ऐसा होता है कि पुरुष किसी दूसरे पुरुष से बदला लेने के लिए किसी औरत से झूठे मामले दर्ज करा देते हैं। पिछले दिनों ऐसी बहुत-सी घटनाएं प्रकाश में आई हैं।
शायद इन कानूनों का दुरुपयोग और ऐसे लोगों को अदालतों की फटकार हमारी आंखें खोलने के लिए काफी होना चाहिए। हमें सबक लेना चाहिए कि जो कानून औरतों की मदद के लिए बने हैं, उनका इस्तेमाल किसी निरपराध को फंसाने के लिए न हो। वरना इनका हश्र भी 498ए की तरह ही होगा। लोग पीड़ित को भी शक की नजर से देखेंगे, उसे न्याय मिलना तो दूर की बात है। औरतें अगर न्याय चाहती हैं, कानून की मदद चाहती हैं तो यह जरूरी है कि वे कानून का गलत इस्तेमाल करके परेशान और सताई गई औरतों की राह मुश्किल न बनाएं।
-लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं