दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को भोपाल में हुई विश्व की भीषणतम गैस त्रासदी के तीस साल बीत जाने के बावजूद प्रशासन न तो अभी तक इस कांड के मृतकों से जुड़े आंकड़े उपलब्ध करा सका है और न ही इस कांड के लिये जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड परिसर में रखे गये 350 मीट्रिक टन कचरे को ही वहां से हटाया जा सका है।
गैर सरकारी संगठन जहां इस गैसकांड से अब तक 25 हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने दावा करते हैं, वहीं राज्य सरकार मतकों का आंकडा 5295 बता रही है। भोपाल गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के उप सचिव के.के. दुबे ने बताया कि अभी तक गैस कांड के कारण मत 5295 व्यक्तियों के परिजन को मुआवजा दिया गया है।
लेकिन दूसरी तरफ भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन ऐंड ऐक्शन की कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने कहा कि पिछले तीस सालों में गैस कांड के चलते मरने वालों का आंकडा 25 हजार को पार कर गया है लेकिन म.प्र सरकार द्वारा केवल 5295 को ही मुआवजा दिया गया है।
वर्ष 2012 में जारी एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, राज्य सरकार ने भोपाल गैस कांड को लेकर गठित मंत्री समूह से 15342 मृतकों के परिजनों को देने के लिये 10-10 लाख रुपये की सहायता राशि की मांग की थी।
कार्बाइड सयंत्र में रखे 350 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे के कारण पर्यावरण और विशेषकर भूजल दूषित हो रहा है लेकिन सरकार इस कचरे के निपटान के लिये कोई कदम नहीं उठा पाई है।
वर्ष 2004 में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा की ओर से दायर याचिका में गैस प्रभावित बस्तियों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे इस रासायनिक कचरे को नष्ट किए जाने की मांग की गई थी। लगभग एक दशक पहले उच्च न्यायालय ने केन्द्र एवं राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि इस जहरीले कचरे को धार जिले के पीथमपुर में इन्सीनरेटर में नष्ट कर दिया जाए।
मोर्चा के संयोजक आलोक प्रताप सिंह ने बताया कि उस समय इस निर्देश का पालन नहीं किया जा सका क्योंकि अनेक गैर सरकारी स्वंय सेवी संगठनों ने यह कहकर इसका विरोध किया था कि इसे जलाने से पीथमपुर में लोगों की जान पर खतरा हो सकता है।