किसानों और गरीबों की जीत- श्रीकांत शर्मा

विश्व व्यापार संगठन (डब्‍ल्‍यूटीओ) की महासभा ने 27 नवंबर को खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए भंडारण के संबंध में एक अहम निर्णय किया है, जिसके बाद भारत में गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम और किसानों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) पर आसन्‍न संकट टल गया है। भारत अब डब्‍ल्‍यूटीओ के सदस्‍य देशों के दखल के बगैर गरीबों को सस्‍ता अनाज देता रहेगा और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित एमएसपी मुहैया कराता रहेगा।

असल में, पिछले वर्ष तत्‍कालीन संप्रग सरकार के कार्यकाल में डब्‍ल्‍यूटीओ की बाली मंत्रिस्‍तरीय वार्ता में बनी सहमति के बाद भारत जैसे विकासशील देशों के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए अनाज के भंडारण और एमएसपी की व्‍यवस्‍था पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे थे। मगर एनडीए सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि भारत गरीबों की खाद्य सुरक्षा और किसानों के लिए एमएसपी के मुद्दे पर कोई समझौता स्‍वीकार नहीं करेगा।

बहरहाल, विकसित देश विकासशील देशों के बाजार में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए खाद्य सब्सिडी में कटौती की वकालत कर रहे हैं। कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते के तहत विकासशील देशों को कृषि क्षेत्र में घरेलू मदद (सब्सिडी) घटाकर कुल उत्पादन का 10 प्रतिशत करना है। उत्‍पादन का आधार 1987-88 के मूल्‍य स्‍तर को माना गया है, जो अब काफी पुराना हो गया है। विकसित देशों के लिए यह सीमा पांच प्रतिशत थी।

विकसित देश इसमें गरीबों के लिए चलाई जाने वाली खाद्य सुरक्षा योजना की सब्सिडी को शामिल करने तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत होने वाले खाद्यान्न भंडारण की सीमा तय करने का दबाव बना रहे हैं। उनकी दलील है कि सब्सिडी देकर, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों को खरीदने और जनवितरण प्रणाली में सस्ती दर पर बेचने से बाजार में विसंगति पैदा होती है। भारत अगर इस प्रस्ताव को मान लेता, तो 2017 के बाद गरीबों को सस्‍ता अनाज बांटने और किसानों को एमएसपी देना मुश्किल होता। यही वजह है कि एनडीए सरकार ने इस मुद्दे पर सख्‍त रुख अपनाया। अब डब्‍ल्‍यूटीओ की महासभा ने यह स्‍पष्‍ट कर दिया है कि अगर 2017 तक भंडारण के मुद्दे पर कोई समाधान नहीं भी निकलता है, तो डब्‍ल्‍यूटीओ का कोई सदस्‍य देश भारत के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को किसी भी तरह की चुनौती नहीं दे सकेगा। इससे भारत की तरह के कई अन्‍य देशों को भी लाभ होगा।

इस जीत की भूमिका उसी समय तैयार हो गई थी, जब भारत ने जुलाई में डब्‍ल्‍यूटीओ के व्‍यापार सुगमता समझौते पर आम राय में शामिल होने से इन्कार कर दिया था। उस समय उदारवादी नीतियों के कथित समर्थकों ने भारत के इस रुख की काफी आलोचना की थी। भारत पर मुक्‍त व्‍यापार की राह में रोड़ा अटकाने के आरोप भी लगे। लेकिन राजग सरकार इन आरोपों से बेपरवाह किसानों और गरीबों के हितों पर अडिग रही। नतीजतन बीते चार महीनों में भारत विश्‍व के धनाढ्य देशों को अपनी इस वाजिब चिंता के बारे में समझाने में सफल रहा।

(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय सचिव हैं)

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