स्कूल की दर्ज संख्या इसी वजह से अत्यंत कम है। अत्यंत दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र तक पहुंचना भी आसान नहीं है। स्कूल के शिक्षक रोजाना लगभग 25 किमी का सफर तय कर पढ़ाने जाते हैं। बतौली क्षेत्र के गोविंदपुर से पहाड़ चिरंगा की ओर जाने पर परसाडांड जटिल पहुचविहीन इलाका है। पहाड़ी कोरवा समुदाय के लोग गांव में आधारभूत सुविधाओं के लिए संघर्षरत हैं।
गांव में आदिम जाति विभाग से संबद्ध प्राथमिक शाला स्थित है। सन् 1991 में बना यह स्कूल भवन मरम्मत के अभाव में जर्जर हो रहा है। इसी स्कूल में पदस्थ शिक्षक विनोद तिर्की ने बताया कि कमरों की हालत ठीक नहीं है। दीवारें खराब हो गई हैं। छतों से सीमेंट गिरता है। उपयोगहीन हो चुके कमरों में कई वर्षों से कबाड़ रख दिए गए हैं। यदि कमरों मे बच्चों को पढ़ाया जाए जो हादसे की आशंका बनी रहती है।
कमरे जर्जर होने से बच्चे कमरों में जाना भी नहीं चाहते। इन्हीं वजहों से बच्चों को बाहर अध्यापन किया जाता है। शिक्षक विनोद तिर्की ने बताया कि मूलत: कोरवा समुदाय के बच्चे पढ़ने आते हैं दुर्गम क्षेत्र होने से अधिकारी हालचाल लेने नहीं आ पाते।
होगी कार्रवाई: बीईओ
हम जर्जर, भवन विहीन स्कूलों के संबंध में लगातार रिपोर्ट भेज रहे हैं। परसाडांड के स्कूल की जानकारी मुझे है। जरूर इस संबंध में दुबारा रिपोर्ट जिला स्तर पर भेजूंगा। निश्चित रूप से कार्रवाई होगी।