बाईस अगस्त को सीआइसी के पद से राजीव माथुर सेवानिवृत्त हुए थे। तब से इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी है। सीआइसी का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति करती है जिसमें उनके अलावा उनकी ओर से नामित कोई मंत्री और विपक्ष के नेता सदस्य होते हैं। विपक्ष के नेता-पद को लेकर महीनों चले विवाद की कीमत केंद्रीय सूचना आयोग को भी चुकानी पड़ी। उसे अपने मुखिया से वंचित रहना पड़ा और वहां लंबित अपीलों की संख्या भी बढ़ती गई। अब विपक्ष के नेता-पद से संबंधित मतभेद सुलझ जाने के बाद सीआइसी की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन लंबित मामलों और पदों के रिक्त रहने की समस्या केंद्रीय सूचना आयोग तक सीमित नहीं है। राज्यों में हालत और खराब दिखाई देती है। आयुक्तों के पद समय से नहीं भरे जा पाते, तो इसकी खासकर दो वजहें हैं। एक तो यह कि सरकारों की दिलचस्पी इसमें नहीं होती कि आयोग अपनी पूरी क्षमता से काम करें। दूसरे, वे अपने चहेतों को सूचना आयुक्त बनाने की फिराक में रहती हैं। सूचना आयोगों का गठन इसलिए किया गया था कि अगर प्रशासनिक अधिकारी निर्धारित समय में मांगी गई सूचना देने से इनकार करें तो इसके खिलाफ अपील की जा सके। लेकिन अगर अपील पर सुनवाई के लिए बरसों इंतजार करना पड़े, तो यह सूचनाधिकार के इस्तेमाल को हतोत्साहित करना है।
हमारी अदालतों में जो स्थिति है वैसी ही सूचना आयोगों में भी होती जा रही है। जजों के बहुत-से पदों का रिक्त होना न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति का एक प्रमुख कारण है। यही बात सूचना आयोगों पर भी लागू होती है। पर इसके साथ कुछ और भी समस्याएं हैं। सूचना आयुक्तों के पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं होते। अपीलों के निपटारे की प्रक्रिया पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। फिर, सभी कर्मचारी अपने काम में दक्ष और कानून के जानकार नहीं होते। लंबित मामलों की तादाद में बढ़ोतरी की एक और खासवजह यह हो सकती है कि सूचना देने से इनकार या आनाकानी करने वाले अधिकारियों में अभी यह भाव नहीं आ पाया है कि वे दंडित किए जा सकते हैं। यों सूचनाधिकार कानून के तहत दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है, पर कई अध्ययन बताते हैं कि ऐसे मामलों की संख्या नगण्य है जिनमें इस प्रावधान का उपयोग हुआ हो। बहरहाल, सूचनाधिकार कानून को भ्रष्टाचार से लड़ने के एक कारगर हथियार के रूप में बचाना है तो यह जरूरी है कि सूचना आयोगों की शक्ति और संसाधन, दोनों में इजाफा हो।
(साभार- संपादकीय, जनसत्ता)