लावारिस बच्चों को बाल कल्याण समिति के हवाले किया जाता है। यहां से उन परिवारों को बच्चों को 6 महीने के लिए सौंपा जाता है, जो इसके लिए इच्छुक होते हैं। बच्चों को चाहने वाले दंपति को देखरेख व संरक्षण के लिए लड़का या लड़की दिए जाते हैं। इनमें उन लोगों को प्राथमिकता मिलती है, जिनकी पहले से संतान नहीं है।
6 महीने तक उचित लालन-पालन होने पर बाल कल्याण समिति अपनी रिपोर्ट बनाकर उस बच्चे को दत्तक देने के लिए मुक्त कर देती है। बाद में कोर्ट से संबंधित दंपति को दत्तक लेने की कार्रवाई पूरी करना होती है। जिले के मामले में देखें तो 2007-08 के बाद किसी लड़की को संरक्षण में नहीं दिया गया, लेकिन इस बीच 2012-13 को छोड़ हर साल कम से कम एक लड़के का संरक्षण किसी दंपति को सौंपा गया।
कितने लड़के- कितनी लड़कियां
बीते कुछ सालों में संरक्षण के लिए बाल कल्याण समिति से इतने बच्चे सौंपे गए। इनमें से लगभग सभी के लिए दत्तक ग्रहण करने की प्रक्रिया पूरी हो गई। इनमें से ज्यादातर कम उम्र के थे।
वर्ष- लड़के- लड़कियां
2006-07- 02- 02
2007-08- 07- 02
2008-09- 02- 00
2009-10- 01- 00
2010-11- 01- 00
2011- 12- 01- 00
2012-13- 00- 00
2013-14- 03- 00
योग- 17- 04
नवजात मिलने में ज्यादातर लड़के
उधर पिछले तीन साल में जिले में लावारिस मिले नवजात बच्चों में से ज्यादातर बालक थे। हालांकि इनमें से कई जीवित नहीं बच सके। बाल कल्याण समिति के अनुसार बीते सालों में जिले में जो बच्चे उन्हें सौंपे गए, उनमें से अधिकतर बालक ही थे। तीन साल में जिले में नवजात शिशु मिलने की 9 घटनाएं हुईं।
कल्याणपुरा में 2 मामले
23 फरवरी 2012 को नवजात का शव मिला। ये बालक का शव था। 24 अक्टूबर 2013 को भी एक नवजात बालक मिला। इसकी मौत हो चुकी थी।
रानापुर में 3 मिले
रानापुर थाना क्षेत्र में 28 जनवरी और 9 मार्च 2012 को नवजात मिलने की घटना हुई। दोनों नवजात बालक थे और दोनों की मौत हो गई थी। 11 अक्टूबर 2014 को भी एक मृत नवजात बालक मिला था।
थांदला में 1 मामला
थांदला थाना क्षेत्र में तीन साल में 1 नवजात मिलने के मामला आया। 21 अगस्त 2012 को मृत अवस्था में नवजात बालिका मिली।
रायपुरिया में 1 प्रकरण
रायपुरिया थाना क्षेत्र के गांव बेड़दा में एक घर के पास से नवजात शिशु का शव मिला। ये बालक था।
झाबुआ में 2मामले
झाबुआ थाना क्षेत्र में 5 जनवरी 2013 को मृत नवजात बालक शिशु मिला। इस साल 26 जून को एक नवजात बालक बड़े तालाब के पास की झाड़ियों में मिला। इसे अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका।
सोच बदली तो है
पहले और अब में सोच में बदलाव तो आया है। हमारे पास बच्चों का संरक्षण मांगने वाले आवेदनों में से कई लड़कियों के हैं। समिति के पास पिछले कुछ समय से बालक ही आ रहे हैं। ये सही है कि बीते कुछ सालों में जो संरक्षण दिए हैं, उनमें से ज्यादातर बालकों के ही प्रकरण थे। -शैलेष दुबे, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, झाबुआ
बदलना होगा खुद को
ये बात अक्सर सामने आती है कि लोग लड़कों को ही गोद लेना चाहते हैं। ये परम्परागत सोच और निजी स्वार्थ का नतीजा है। हम शिक्षित हो गए, लेकिन सोच बदलना जरूरी है, लेकिन उम्मीद खत्म नहीं हुई। अब ऐसे माता-पिता भी मिलते हैं, जो लड़कियों के पालक बनना चाहते हैं। -भारती सोनी, समाजसेवी, झाबुआ