विभागीय सूत्रों के अनुसार कार्पोरेशन में एक भी डॉक्टर या दवा का विशेषज्ञ नहीं है। इसी वजह कई दवाओं का चार- पांच साल का स्टॉक एक साथ खरीद लिया जाता है। सूत्रों के अनुसार बिलासपुर में नसबंदी में इस्तेमाल की गई कई दवाओं पर एक्सपायरी डेट नहीं है। इसी वजह से वहां हुई महिलाओं की मौत के मामले में भी विशेषज्ञ दवा को ही जिम्मेदार मान रहे हैं।
कार्पोरेशन के संचालक की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रताप सिंह की छवि साफ- सुथरी मानी जाती है, लेकिन विशेषज्ञों की राय में यदि वहां तकनीकी जानकार रहे तो बेहतर होगा। विभागीय अफसरों के अनुसार प्रदेशभर के अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए दवा खरीद करने वाली सीजीएमएससी पूरी तरह टेंडर के आधार पर दवा खरीदी करती है।
सरकार के दूसरों विभागों की तरह सीजीएमएससी भी दवा के लिए टेंडर जारी करती है और जो कंपनी सबसे सस्ते दर पर दवा देने को राजी होती है, उसे सप्लाई का आर्डर दे दिया जाता है। इसी वजह से कई बार गुणवत्ताहीन दवा की आपूर्ति हो जाती है। बताया जाता है कि मोतियाबिंद के ऑपरेशनों में भी हुई गड़बड़ी के कई मामलों की जांच में दवा को बड़ा कारण माना गया है। इस संबंध में प्रताप सिंह से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।
एक बार में पांच साल के लिए खरीदी
सूत्रों के अनुसार एक्सपर्ट के बिना चल रहे कार्पोरेशन में कुछ समय पहले रेबीज के इंजेक्शन का पांच साल का स्टॉक एक साथ खरीद लिया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि कार्पोरेशन में कोई विशेषज्ञ या डॉक्टर नहीं है।
बंद होनी चाहिए टेंडर से दवा खरीदी
सरकार जब तक टेंडर के जरिए दवा खरीदी करती रहेगी, तब तक अच्छी दवा नहीं मिल पाएगी। टेंडर के जरिए सरकार सबसे सस्ती और निचले स्तर की दवा खरीदती है। ऐसे में दवा की गुणवत्ता प्रभावित तो होगी ही। मेरी राय में सरकारी अस्पताल में जरूरतमंदों को अच्छी दवा उपलब्ध करना है तो टेंडर के जरिए दवा खरीदी बंद कर देनी चाहिए। दवा रेट के बजाय गुणवत्ता के आधार खरीदी जानी चाहिए।
डॉ. राकेश गुप्ता, नाक, कान गला रोग विशेषज्ञ