किसान जहां अपनी आंखों के सामने बर्बाद होती फसलों को उखाड़ने पर विवश दिखाई दिए वहीं किसानों द्वारा खेती-किसानी में मनमर्जी पर भी सवाल उठे हैं। फिलहाल किसान मुआवजे के लिए हाहाकार कर रहे है वहीं प्रशासनिक अमला खेत-खेत नुकसानी के लिए सर्वे कर रहा है। लगभग 80 प्रतिशत सर्वे में 10 से 12 प्रतिशत फसलें पूरी तरह वायरस की चपेट में आ गई।
प्राकृतिक प्रकोप नहीं वायरस
इस वर्ष किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया। बताया जाता है कि यह वायरस अटैक प्राकृतिक प्रकोप नहीं है। रस चूसने वाले कीट व सफेद मक्खी के आक्रमण से यह संक्रमण हुआ। इसमें पत्तियां सिकुड़ गई और पौधे सूख गए। ग्राम ढकलगांव के कृषक कमल टीकमचंद बड़वाला ने कहा कि उन्होंने लगभग 8 एकड़ कृषि भूमि से मिर्च की फसल लगाई थी। वायरस के कारण फसल बर्बाद हो गई।
उन्होंने एक लाख रुपए के मिर्च के रोपे लगाए थे। साथ ही 60 हजार रुपए में मुनाफे पर तीन एकड़ जमीन ली थी। इसी प्रकार बरुड़ क्षेत्र के प्रेमलाल गणपत, लक्ष्मण कुमरावत ने पीड़ा व्यक्त की कि क्षेत्र के ढेरों गांवों के किसान मिर्च फसल से बर्बाद हो गए।
उत्पादकता के लालच का पहला अटैक
विभागीय विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों का मानना है कि क्षेत्र के किसानों में गुणवत्ता की बजाए उत्पादकता का लालच रखा और यही पहला कारण रहा। किसानों ने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीआर) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हार्टिकल्चर रिसर्च (आईआईएचआर) द्वारा अनुशंसित सीड का उपयेाग नहीं किया। अधिकांश किसानों ने हाईब्रीड सीड्स का उपयोग किया। साथ ही नियमानुसार नर्सरी उपचारित नहीं की। हाईब्रीड सीड पैकेट पर ‘ट्रीटेड’ लिखे होने पर भी सवाल खड़े हो रहे है।
गौरतलब है कि जिले में 50 से अधिक सीड वेरायटियां बाजार में उपलब्ध थी। उधर जैविक दवाईयों के प्रेरित करने वाले युवा उद्यमी आसिफ खान ने दुख जताया कि किसान रासायनिक दवाईयों का मन से प्रयोग कर रहे है। साधारण नीम-निंबोली ऑइल का प्रयोग किया जाना चाहिए जो किफायती होने के साथ कारगर है। उनके अनुसार कसरावद, चंदनपुरी क्षेत्र में कई किसानों ने इसका प्रयोग कर फसलें बचाई।
जिले में मिर्च उत्पादन… वर्ष-रकबा-उत्पादकता
2010-11 -18 हजार 147 हैक्टेयर -2 टन प्रति हैक्टेयर
2011-12-25 हजार 630 हैक्टेयर-2.8 टन प्रति हैक्टेयर
2012-13-27 हजार 643 हैक्टेयर-3 टन प्रति हैक्टेयर
2013-14-35 हजार 552 हैक्टेयर-4 टन प्रति हैक्टेयर
2014-15-38 हजार 085 हैक्टेयर-3 टन प्रति हैक्टेयर (लगभग)
इनका कहना है
जिले में सर्वे कार्य अंतिम चरणों में है। किसानों को सुझाव दिया गया है कि वायरस का कोई ईलाज नहीं है। वैज्ञानिकों और विभागीय विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में ही खेती करें।
-वीएस गुर्जर, उपसंचालक उद्यानिकी, खरगोन
इस वर्ष मौसम की मार ने फसल बर्बाद की। नर्सरी मेंनन्हें पौधों पर भी गर्मी व आद्रता का प्रतिकूल प्रभार पड़ा। सिंचाई के बावजूद तापमान में कमी नहीं आई। नर्सरी से ही पौधों में अटैक था। उत्पादकता की बजाए अनुशंसित बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए।
-डॉ. एमएल शर्मा, मुख्य वैज्ञानिक, कृषि अनुसंधान केंद्र, खरगोन
इस बार मिर्च की फसल को लेकर किसानों को निराशा हाथ लगी। सर्वे रिपोर्ट आना शेष है। भविष्य में किसानों को प्रशिक्षण कार्यक्रमों में जाने के लिए ओर अधिक प्रेरित किया जाएगा।
-नीरज दुबे, कलेक्टर, खरगोन