कार्यकारी कलेक्टर के न्याय के आश्वासन और इस मामले को एक बार फिर विशेष सचिव (विवाद) के समक्ष समीक्षा के लिए पेश करने तथा हर संभव सहायता का वादा करने के बाद लोगों ने किसान का शव लाकर अंतिम संस्कार किया।
यहां पड़धरी तहसील के रगोल गांव का किसान अमरा गोविंद जादव ने सरकारी बंजर जमीन सर्वे न.177 में पांच गुंठा में अतिक्रमण कर खेती करते थे। इसमें से दो गुंठा जमीन खेती के लिए नियमित करने की मांग की। इसके लिए उसने 2012 के सातवें और 11वें महीने में तहसीलदार को अर्जी दी। इस अर्जी को प्रांत अधिकारी राजकोट ग्रामीण को भेजा गया।
प्रांत अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जमीन गांव के पास ही है और कीमती है। यह सार्वजनिक उदेश्यों के लिए उपयोग में भी आ सकती है। इस प्रकार के अभिप्राय के मद्देनजर पड़धरी तहसील के तहसीलदार ने अर्जी खारिज कर दी। इस दौरान अर्जी खारिज होने के बाद अमरा भाई सोमवार को अपनी इस मांग पर पुनर्विचार के लिए दुबारा तहसीलदार कार्यालय पहुंच गए।
उन्हें बताया गया कि वे इस बारे में विशेष सचिव (विवाद) में आवेदनपत्र दे सकते है। इससे हताश होकर उसने अपने साथ लाए जहर पी लिया। राजकोट सिविल अस्पताल में उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई। मृतक के पुत्र नरशी तथा भाई रामजी ने बताया कि सरकार ने यह जमीन 1973 में उन्हें दी थी। अमराभाई गत 20 वर्षों से जमीन पर खेती कर रहे थे।
इस दौरान 2005 में जमीन वापस ले लेने पर तहसील दार कार्यालय में मांग की गई थी। लेकिन जमीन वापस क्यों ले ली गयी, उसका जवाब ही नहीं दिया जा रहा था। गौरतलब है कि गुजरात में गत पांच वर्षों में 96 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को कारण बताओं नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
सच तो यह है कि राज्य सरकार ने मृतक एक भी किसान के परिजनों को मृतक सहायता नहीं दी। यह कहकर इंकार कर दिया कि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों को सहायता का कोई प्रावधान ही नहीं है।