ये है रिसर्च
आरएमआरसीटी ने मलेरिया पैरासाइट की रिसर्च के लिए बैगाचक के अलावा मण्डला, डिण्डौरी व अन्य जिलों के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों को चुना है। यह पैरासाइट मच्छर में होता है। अध्ययन से यह पता चल रहा है कि मलेरिया पैरासाइट के माल्युक्यूल्स का स्ट्रक्चर धीरे-धीरे बदल रहा है। मप्र में पाए गए मादा मच्छरों के पैरासाइट में अभी तक पूरी तरह परिवर्तन नहीं हुआ है। इससे दवाओं का डोज वही चल रहा है।
बदल गया स्ट्रक्चर
उत्तर-पूर्वी राज्य में पैरासाइट पर रिसर्च से पता चला है इस क्षेत्र में पैरासाइट में माल्युक्यूल्स के स्ट्रक्चर में पूरी तरह परिवर्तन हो गया है। इससे यहां दवाओं का डोज दोगुना दिया जाता है। इसके अलावा दवाओं की कॉम्बीनेशन थैरेपी भी बदली गई।
तीन साल डोज के दिन बढ़े
मप्र में 2007 में क्लोरोक्वीन टेबलेट बंद किया गया। इसका कारण इसका प्लाज्मोडियम फेल्सिफेरम के प्रति ड्रग रजिस्टेंट था। इसकी जगह सल्फर डॉक्सिन पायरामिथामाईन दिया जाने लगा। इसका दो टेबलेट एक साथ मरीज को एक ही बार में दी जाने लगी।
वर्ष 2010 में नई ड्रग पॉलिसी आई। भारत में इसे लागू किया गया। इसके तहत एसीटी थैरेपी दी जाने लगी। इसमें आर्टिसुनेट के साथ सल्फरडॉक्सिन पायरामिथामाईन का काम्बीनेशन दिया जाने लगा। इस थैरेपी में दवाओं का डोज तीन दिन तक दिया जाता है। इस तरह तीन डोज मरीज को दिए जाते हैं।
दवा के प्रति रजिस्टेंट
उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्टिसुनेट के साथ सल्फरडॉक्सिन पायरामिथामाईन काम्बिनेशन के विरुद्ध पैरासाइट में रजिस्टेंट आ गया। इससे यहां ड्रग थैरेपी बदली गई। यहां आर्टीमीथर के साथ ल्यूमीफेंटेन्ट (एएल) का डोज सुबह और शाम दिया जा रहा है। इस तरह इसका 6 डोज मरीज को दिया जाता है।
रिसर्च चल रही है
मलेरिया पैरासाइट पर रिसर्च चल रही है। इसके गुणसूत्र की संरचना में परिवर्तन देखे जा रहे हैं। जब इसमें पूरी तरह से परिवर्तन हो जाएगा। तब मलेरिया की दवा थैरेपी में परिवर्तन करना होगा। ऐसा उत्तर-पूर्वी राज्य में हुआ है। वहां पैरासाइट के माल्युक्यूल्स में परिवर्तन हो गया है। इससे वहां दवा की काम्बीनेशन थैरेपी और डोज में परिवर्तन किया गया है।
डॉ. नीरू सिंग डायरेक्टर, आरएमआरसीटी
कब फैलता पैरासाइट
मलेरिया के पैरासाइट मादा मच्छर में रहते हैं। मच्छर को जिंदा रहने के लिए आद्रता जरूरी है। गर्मी में मलेरिया कम हो जाता है। मच्छर पैरासाइट पनपने के लिए दस से पन्द्रह दिन तक जिंदा रहना जरूरी है। ठंड में यह जल्द पनपते हैं। इनके लिएपनपने के लिए तापमान अनुकूल मिल जाता है। इससे ठंड में मलेरिया बढ़ जाता है।
40 गांवों के लोगों
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