एफिडेविट बनाने में हर वर्ष खर्च होते हैं 8000 करोड़ रुपए

नई दिल्ली। यह देखते हुए कि हम भारतीय हर वर्ष करीब आठ हजार करोड़ रुपए शपथ-पत्र बनवाने पर खर्च कर देते हैं, केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालयों और राज्य सरकारों को सरकारी कामों के लिए दस्तावेजों के स्व-प्रमाणन (सेल्फ अटेस्टेशन) को बढ़ावा देने को कहा है।

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने केंद्र सरकार के मंत्रालयों से वर्तमान में आवश्यक शपथ-पत्रों और विभिन्न आवेदनों के साथ लगने वाले दस्तावेजों के राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणित करने की विभिन्ना चरणों में समीक्षा करने को कहा है। साथ ही जहां संभव हो, दस्तावेजों के स्व-प्रमाणन करवाने की व्यवस्था करने और शपथ-पत्र समाप्त करने को कहा है।

पैसे और समय की बर्बादी

कुछ मंत्रालयों ने आवेदकों द्वारा अंक सूची, जन्म प्रमाण-पत्र का स्व-प्रमाणन शुरू भी कर दिया है। इस प्रक्रिया के तहत अंतिम चरण में ओरिजिनल दस्तावेज दिखाने की व्यवस्था की गई है। मंत्रालय का कहना है कि दस्तावेजों का स्व-प्रमाणन "सिटिजन फ्रेंडली" है। शपथ पत्र बनवाना गरीबों के लिए पैसे की और नागरिकों और सरकारी अधिकारियों के लिए समय की बर्बादी है।

राज्य सरकारों को भी विभिन्न विभागों और बोर्डों, निगमों और मैदानी कार्यालयों में शपथ-पत्र और दस्तावेजों के राजपत्रित अधिकारी से स्वप्रमाणन की समीक्षा करने को कहा गया है और जहां संभव हो स्व-प्रमाणन को बढ़ावा देने को कहा गया है। शपथ-पत्र बनवाने के लिए स्टाम्प पेपर खरीदने, लिखने वाला तलाशने, नोटरी को पैसा आदि में समय और प्रयास लगते हैं।

इसके विपरीत शपथ-पत्र कानूनन जो काम करता है, वह स्व-घोषणा से भी किया जा सकता है। अकेले पंजाब में करीब आधे रहवासी हर साल किसी न किसी सरकारी सेवा के लिए शपथ-पत्र देते हैं। यदि इस हिसाब से देखा जाए तो यह संख्या 20 करोड़ शपथ-पत्रों तक पहुंच जाएगी। यदि एक दिन का मेहनताना, स्टाम्प और फीस और अन्य शुल्क मिला लिया जाए तो भारत में नागरिक हर साल आठ हजार करोड़ रुपए शपथ-पत्रों पर खर्च करते हैं।

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