यूपीए सरकार इस अकूत काली दौलत को तो वापस नहीं ला सकी थी, लेकिन उसने एक श्वेत-पत्र जारी कर यह जरूर बताया था कि काले धन से हम क्या समझें। तब इस रिपोर्ट को यह कहते हुए तिरस्कारपूर्वक निरस्त कर दिया गया था कि सरकार इसके मार्फत खुद को बचाने की कोशिश कर रही है। तब अगर भाजपा आक्रामकता के साथ यह मांग लेकर यूपीए सरकार का घेराव कर रही थी कि वह काले धन को देश में वापस लेकर आए तो एक विपक्षी दल के रूप में उसके द्वारा यह करना उचित ही था। अब चूंकि वह सत्ता में है तो उस पर काले धन को वापस लाने का और ज्यादा दारोमदार रहेगा।
वर्ष 2009 में पूर्व भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने देशभर की यात्रा करते हुए काले धन को वापस लाने में सरकार की नाकामी पर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट कराया था। आडवाणी का कहना था कि यूपीए सरकार विदेशी बैंकों में खाताधारकों को बचाने की कोशिश कर रही है, जो कि भारतीय कानूनों का उल्लंघन है। तब लोकसभा चुनाव होने वाले थे और आडवाणी भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। बोफोर्स घोटाले के बाद काले धन का मुद्दा उठाकर वे यह आम राय बनाने की कोशिश कर रहे थे कि कांग्रेस और उसका शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार में लिप्त है। और यह भी कि हो न हो विदेशों में बैंक खाताधारकों का कांग्रेस पार्टी से कोई ताल्लुक है, तभी वह उनके नाम उजागर करने में आनाकानी कर रही है।
भाजपा वह चुनाव हार गई थी, लेकिन इस मामले को उसने तिलांजलि नहीं दी। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसने फिर से इसे जोर-शोर से उठाया। उसने वादा किया कि अगर उसकी सरकार बनी तो वह काले धन को वापस लाने की कार्रवाई शुरू करेगी। इसी दौरान एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने स्विस बैंकों में जमा धन को भारत लाने के लिए विशेष जांच दल गठित करने के निर्देश दिए। भाजपा की सरकार बनी तो उसने अपने कार्यकाल के पहले ही दिन विशेष जांच दल गठित किया। इसी कड़ी में सरकार को विभिन्न् विदेशी बैंकों में लगभग 800 खाताधारकों के नाम प्राप्त हुए हैं, लेकिन अब सरकार का कहना है कि वह विभिन्न् देशों के साथ किए गए गोपनीयता के अनुबंध के चलतेइन नामों का खुलासा नहीं कर सकती। इस पर न केवल मीडिया, बल्कि भाजपा समर्थक वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने भी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उसे याद दिलाया कि वह यूपीए सरकार के तर्कों को ही दोहरा रही है। जेठमलानी का कहना है कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि खाताधारकों के नाम उजागर न किए जा सकें। यूपीए सरकार द्वारा जारी किए गए श्वेत-पत्र में भी उन परिस्थितियों का उल्लेख था, जिनमें खाताधारकों के नाम उजागर किए जा सकते हैं। इन लोगों के नाम सामने लाने का यही मतलब होगा कि भ्रष्ट और अनैतिक तौर-तरीकों से काली कमाई करने वालों के मन में यह डर बैठा दिया जाए कि भारत की न्याय व्यवस्था और प्रवर्तन एजेंसियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
सोमवार को भाजपा सरकार ने तीन ऐसे खाताधारकों के नाम उजागर किए, जिनके खिलाफ जांच पूरी होकर अभियोजन प्रारंभ किया जा चुका है। सरकार की मंशा ऐसे कुछ लोगों के नाम उजागर करने की भी है, जो पिछली यूपीए सरकार से ताल्लुक रखते थे। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा इस आशय के संकेत दिए जाने के बाद से सरकारी हलकों में अटकलों का दौर जारी है कि ये नाम कौन हो सकते हैं, जिनकी वजह से वर्ष 2012 से 2013 के दौरान स्विस बैंकों में भारतीय निवेश में 40 फीसद का इजाफा हुआ था। इस अवधि में स्विस बैंकों में कुल 12 हजार करोड़ डॉलर की रकम जमा कराई गई थी। स्विस बैंकों में सबसे ज्यादा रकम यूपीए सरकार के अंतिम छह माह के कार्यकाल के दौरान जमा कराई गई थी, जब यह स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं करने जा रही है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में बड़े पैमाने पर राशि जमा कराए जाने के इस तथ्य के आधार पर ही भाजपा के लिए अवैध खाताधारकों पर कार्रवाई करना आसान साबित हो सकता है। बहुत संभव है कि भाजपा जल्द ही यूपीए सरकार के उस मंत्री का नाम उजागर कर दे, जिनके पुत्र ने कथित रूप से विभिन्न् व्यवसायों से अरबों रुपयों की कमाई की है। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी संकेत दे रहे हैं कि इस सूची में तीन ऐसे पूर्व मंत्रियों के नाम शामिल हैं, जिन्हें गांधी परिवार का करीबी माना जाता था। इस तरह के आरोप लगाना आसान है, लेकिन हकीकत यही है कि सरकार सभी खाताधारकों के नाम उजागर करने का साहस नहीं दिखा सकती, क्योंकि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था के लड़खड़ा जाने का खतरा होगा। इसके बाद विदेशी बैंक भारत के वित्त मंत्रालय का भरोसा करना बंद कर देंगे।
फिर इसमें कई कानूनी पेचीदगियां भी हैं। वर्ष 2000 के बाद से विदेशों में बैंक खाता रखना एक संज्ञेय अपराध नहीं है। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति का विदेशी खाता है भी और उसमें गैरकानूनी पैसा नहीं है तो ज्यादा से ज्यादा यही किया जा सकता है कि आयकर विभाग खाताधारक को कर के साथ ही जुर्माना अदा करने को मजबूर करे। जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि खाताधारकों द्वारा विदेशी बैंकों में जमा किया गया धन गैरकानूनी है, तब तक उनपरकार्रवाई करना बहुत कठिन है। इससे पहले जब एचएसबीसी बैंक में खाताधारक भारतीयों की सूची सरकार को सौंपी गई थी तो उनसे भी कर और जुर्माना ही वसूल किया गया था। सोचने की बात है कि उन आम व्यवसायियों के नाम उजागर करने से भी भला क्या हासिल होगा, जिन्हें विदेशों में कारोबार करने के लिए एक बैंक खाते की जरूरत होती है? और अगर इस सूची में टाटा, बिड़ला, अंबानी जैसों के नाम शामिल हुए, तब क्या किया जाएगा?
विदेशों में जमा काला धन वापस लाना महत्वपूर्ण है, लेकिन देश में हर जगह फैली बेमियादी संपत्ति के बारे में क्या? अगर हम अपने इर्द-गिर्द मौजूद आलीशान कोठियों और बंगलों, लंबी-चौड़ी कारों और ऐशो-आराम की चीजों को देखें तो पाएंगे कि विदेशों में जितना काला धन जमा है, उससे ज्यादा काली कमाई तो देश में ही घूम रही है। इस दौलत की बदौलत ही चुनाव दम-खम के साथ लड़े जाते हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के मुताबिक काला धन भारत की जीडीपी के 25 से 35 फीसद के बराबर है, जो कि सिर चकरा देने वाला आंकड़ा है। सरकार को चिंता इस बात की होनी चाहिए कि आखिर लोग कर क्यों नहीं चुकाना चाहते और उन्हें अपना कारोबार चलाने के लिए काले धन की क्यों दरकार रहती है। एक ठोस कर प्रणाली के मार्फत ही इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है। क्या सरकार ऐसी कोई व्यवस्था कायम करने की तत्परता दिखा सकेगी?
(लेखक हार्ड न्यूज मैगजीन के एडिटर इन चीफ हैं। ये उनके निजी विचार हैं