उल्लेखनीय है कि डॉ.आरएच रिछारिया ने छत्तीसगढ़ के विभिन्न् इलाकों में घूम-घूमकर वहां के करीब 17 हजार धान के किस्मों की पहचान की थी। साथ ही इन किस्मों के जर्मप्लाज्म को संरक्षित किया। इसके बाद राज्य के अन्य कृषि वैज्ञानिकों ने भी करीब पांच हजार नई किस्मों की पहचान कर इसे संरक्षित किया। इस तरह छत्तीसगढ़ में धान की करीब 23 हजार 250 देशी किस्में हैं। इनमें से ज्यादातर किस्मों की पारंपरिक खेती बंद हो चुकी है। ज्यादातर किसान गिनी-चुनी नई किस्मों की ही खेती कर रहे हैं। ऐसे में कई गुणवत्ता युक्त देशी किस्में आम किसानों व आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि हर साल इन संरक्षित किस्मों की चार-पांच हजार वेराइटी की खेती की जाती है। इससे इसका जर्मप्लाज्म संरक्षित रहता है। वहीं इस बार सभी 23 हजार किस्मों की खेती की जा रही है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इससे रिसर्च के लिए शोधार्थियों व अन्य संस्थानों को इन किस्मों के बीज उपलब्ध हो पाएंगे।
राइस जर्मप्लाज्म का विशाल संग्रह
कृषि विवि रायपुर में धान के जनन द्रव्य (राइस जर्मप्लाज्म) का विशाल संग्रह है। यह विशाल संग्रह विश्व में अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र फिलीपिंस के संग्रहण के बाद द्वितीय स्थान रखता है। यह धान की जैवविविधता के क्षेत्र में एक विशिष्ट संग्रहण है। इसके तहत अनेक औषधीय, सुगंधित गुणों से युक्त किस्मों के साथ अनेक विशिष्ट गुणों जैसे अलग-अलग रंग, आकार व वजन वाले धान के दानों वाले किस्में शामिल हैं।
रिसर्च के लिए जरूरी
कृषि विवि के पादप प्रजनन विभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एके सरावगी का कहना है कि इस बार सभी 23 हजार किस्मों को खेतों में लगाया गया है। इसका उद्देश्य इससे प्राप्त होने वाले बीजों को अध्ययन के लिए भारतीय बीज अनुसंधान के साथ ही जिन संस्थानों को अध्ययन के लिए जरूरत है, उन्हें दिया जाना है।
इन किस्मों की सूची का प्रकाशन जरूरी
डॉ. रिछारिया कैंपेन के संयोजक जैकब नेल्लीतनम का कहना है कि छत्तीसगढ़ में 23 हजार से अधिक धान की प्रजातियां हैं। विवि को इन प्रजातियों की सूची तैयार कर हर किस्म की पहचान व गुणों के साथ प्रकाशन करना चाहिए। इससे आम किसानों को भी इसका लाभ मिलेगा।