सूचना के अधिकार कानून के जरिये हुए एक खुलासे में कहा गया है कि इस फेरबदल से पांच करोड़ घर प्रभावित होंगे. उपरोक्त बातें पीपुल एक्शन फॉर इम्प्लॉयमेंट गारंटी नामक संस्था के बैनर तले आयोजित एक प्रेस वार्ता में कही गयीं.
* क्या है मामला
आरटीआइ के जरिये यह खुलासा हुआ है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी ने मनरेगा के प्रावधानों में बदलाव करने का आदेश दिया है. इसके तहत लेबर-मेटेरियल अनुपात जो कि वर्तमान में 60:40 है, को बदल कर 51:49 किये जाने के आदेश दिये गये हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो मनरेगा द्वारा सृजित रोजगार में 40 फीसदी की गिरावट आयेगी. साथ ही बेनामी कांट्रैक्टर मनरेगा के कामों में सक्रिय हो जायेंगे. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने पिछले दिनों कहा है कि मनरेगा को आदीवासी और पिछड़े जिलों तक सीमित किया जायेगा. आरटीआइ के जरिये यह खुलासा हुआ है कि मंत्रालय पीएमओ द्वारा दिये गये निर्देश के तहत इसकी जांच कर रहा है.
* विशेषज्ञों की राय
आरटीआइ और मनरेगा कानून के निर्माण से जुड़ी रहीं अरुणा राय ने कहा कि मनरेगा कानून एक ऐसा महत्वपूर्ण कानून है, जिसे संसद ने सर्वसम्मति से ग्रामीण गरीबों की बेहतरी और उन्हें रोजगार देने के लिए किया गया था. सरकार की तरफ से इसमें फेरबदल किये जाने के किसी भी प्रयास का सबसे ज्यादा असर इन्हीं पर होगा.
वहीं, जाने-माने अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने कहा कि इस महत्वपूर्ण कानून के जरिये न सिर्फ ग्रामीण गरीबों को भयावह गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिली, बल्कि इसी कार्यक्रम की बदौलत वैश्विक आर्थिक संकट के समय भारत पर इसका उस हद तक प्रभाव नहीं पड़ा.
अजमेर के हरमादा पंचायत की सरपंच नोराटी देवी ने कहा कि यह सरकार लोगों को बेहतर रोजगार के साधन प्रदान करने के वादे के साथ सत्ता में आयी थी. लेकिन, केंद्र सरकार जिस तरह से मनरेगा कार्यक्रम में बदलाव करने जा रही है, उससे ग्रामीण गरीबों पर काफी असर पड़ेगा. पीपुल एक्शन फॉर इम्प्लॉयमेंट गारंटी के बैनर तले देश के सौ से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मनरेगा में हो रहे बदलाव को रोकने की मांग की है.