ढाई लाख प्राथमिक स्कूलों में अलग-अलग शौंचालय नहीं

देश के 1.61 लाख स्कूलों में शौंचालय बंद पड़े हैं जबकि करीब ढाई लाख स्कूलों ऐसे हैं जिनमें या तो लड़कों के लिए अलग शौंचालय नहीं हैं या फिर लड़कियों के लिए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इन स्कूलों में शौंचालयों के निर्माण के लिए सभी से सहयोग की अपील की है। इसलिए उसने मंत्रालय की वेबसाइट पर ऐसे स्कूलों का न सिर्फ ब्यौरा डाल दिया है बल्कि यदि कोई टॉयलेट के लिए मदद करना चाहता तो उस राज्य के संबंधित अधिकारियों का नाम और फोन नंबर भी दिया है।

मंत्रालय के अनुसार देश भर में कुल 1094431 प्राथमिक स्कूल हैं। इनमें से 152231 स्कूल ऐसे हैं, जहां लड़कों के लिए अलग से टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है जबकि 101443 स्कूल ऐसे हैं जहां लड़कियों के लिए टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। ऐसे स्कूल करीब 23 फीसदी के करीब हैं जहां लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट नहीं हैं।

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार करीब 15 स्कूल ऐसे हैं जहां टॉयलेट तो बने हैं लेकिन वे बंद पड़े हैं। वे इस्तेमाल के लायक नहीं हैं। ऐसे स्कूलों की संख्या 161440 हैं। जिनमें लड़कियों के 87984 तथा लड़कों 73456 स्कूल हैं। इन स्कूलों के इस्तेमाल योग्य नहीं होने की वजह से टूटा होना और सबसे बड़ी वजह स्कूलों में पानी का नहीं होना है।

बिहार की स्थिति सबसे खराब-बिहार में 70673 स्कूल हैं। जिनमें से 17982 स्कूल ऐसे हैं जहां लड़कियों के लिए अलग शौंचालय नहीं हैं जबकि 19422 स्कूल ऐसे हैं जहां लड़कों के लिए अलग शौंचालय नहीं हैं। इसी प्रकार राज्य में इस्तेमाल नहीं हो रहे स्कूल शौंचालयों की संख्या भी ज्यादा है। 9225 लड़कियों के और 9517 लड़कों के शौंचालय इस्तेमाल में नहीं हैं।

इसी प्रकार पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा की स्थिति भी बेहद खराब है। इस हिसाब से उत्तर प्रदेश की स्थिति ज्यादा खराब नही है। राज्य में 160763 स्कूल हैं। लेकिन 2355 स्कूलों में लड़कियों तथा 4634 स्कूलों में लड़कों के लिए अलग शौंचालय नहीं हैं। इसी प्रकार 5971 स्कूलों में लड़कियों तथा 3842 स्कूलों में लड़कों के शौंचालय इस्तेमाल के योग्य नहीं हैं।

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