डा. मैटी बताते हैं कि भारत में क्लिंकर को 1450 डिग्री तापमान पर गर्म किया जाता, सिमेंट निर्माण में 90 फीसदी लाइम स्टोन लगता है। कार्बन उत्सर्जन अगले 8-10 सालों में दोगुना हो जाएगा। क्योंकि भारत में हर साल 220 मिलियन टन सीमेंट की खपत है। नई तकनीक में 40-50 फीसदी क्लिंकर, 30 से 40 फीसदी कैल्साइट चाइना क्ले, 15 फीसदी लाइम स्टोन और बाकी जिप्सम डालकर हम सीमेंट तैयार करेंगे। खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए हमें मिश्रण को 700 डिग्री तापमान पर रखना होगा। इससे हर साल 80 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन कम होगा और कार्बन क्रेडिट में वृद्धि होगी। फिलहाल सीमेंट की मजबूती के पैमाने को मापा जा रहा है। लेकिन इससे भवन निर्माण की कीमत में करीब 20 फीसदी की गिरावट आ जाएगी। झांसी में एक बिल्डिंग का निर्माण इसी सीमेंट से किया गया है।
इस मौके पर आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर शशांक बिश्नोई ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल एक समय तक हो सकता है इसके लिए नए विकल्पों को तलाशना जरूरी है और लाइम स्टोन कलसिनेड क्ले पोर्टलैंड सीमेंट (एलसी-3) एक बेहतर विकल्प हो सकता है। मद्रास आईआईटी के प्रोफेसर रविंद्र गट्टू ने कहा कि आईआईटी मिलकर सीमेंट कंपनियों के इस दिशा में रिसर्च करेंगे, शुरुआत छोटे स्तरों पर निर्माण कार्य से होगी।