नयी दिल्ली : भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या भारत में 9.5 प्रतिशत घट कर 19.07 करोड़ पर आ गयी, जो दो दशक पहले 21.08 करोड़ थी. वहीं, पड़ोसी देश पाकिस्तान में ऐसे लोगों की संख्या इस अवधि में 38 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.
हालांकि दक्षिण एशिया में सबसे अधिक भूखे लोगों के मामले में भारत (19.07 करोड) अलग स्थान रखता है. पाकिस्तान में भूखे लोगों की संख्या 3.96 करोड़ है, जबकि बांग्लादेश में यह संख्या 2.62 करोड़, श्रीलंका में 52 लाख और नेपाल में 36 लाख है.
यह रिपोर्ट यूएन की संस्था एफएओ, कृषि विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय कोष व विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा तैयार है. रिपोर्ट के मुताबिक, दो दशक पहले पाकिस्तान में भूखे लोगों की संख्या 2.87 करोड़ थी. बांग्लादेश ने भूख के शिकार लोगों की तादाद घटाने में उल्लेखनीय प्रगति की है. 1990-92 के 3.6 करोड़ के मुकाबले अब यह संख्या 27 प्रतिशत से अधिक घट कर 2.62 करोड़ रह गयी है. नेपाल ऐसे लोगों की संख्या 14.4 फीसदी तक घटा कर 36 लाख पर लाने में सफल हुआ है.
भारत और इसके पड़ोसी देश गरीबी कम करने और विकास के एक न्यूनतम स्तर को हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21वीं शताब्दी के शुरू में तय मेलीनियम डेवलपमेंट गोल (एमडीजी) के तहत वर्ष 2015 तक भूखे लोगों की संख्या आधी करने के लक्ष्य से काफी पीछे हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, 63 विकासशील देश आज की तिथि तक एमडीजी लक्ष्य तक पहुंचे हैं और छह देश 2015 तक लक्ष्य हासिल करने के करीब हैं.
* दो डॉलर खर्चते हैं गरीब अमेरिकी
वॉशिंगटन. भारत में गरीबी का पैमाना बनानेवाले आर्थिक सलाहकारों को एक करारा झटका लगा है. इन लोगों ने भारत के ग्रामीण और शहरी गरीबों के जीवन बसर के लिए अधिकतम 17 और 23 रुपये प्रतिदिन खर्च बताया था, मगर अमेरिका से गुरुवार को अभी आयी ताजा रिपोर्ट ने इन सलाहकारों को करार झटका दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां की करीब एक करोड़ आबादी प्रतिदिन दो डॉलर यानी 120 रुपये प्रतिदिन खर्च करके अपना जीवन-यापन करते हैं.
यहां एक करोड़ लोग प्रतिदिन दो डॉलर में यानी 120 रुपये खर्च करके अपना जीवन-यापन करते हैं. ऐसे लोग सरकार द्वारा वितरित मुफ्त भोजन पर आश्रित हैं. ब्रुकलिन इंस्टीट्यूट रिसर्चर लॉरेंस चैंडी ने यह चौंकाने वाली जानकारी दी है. इन गरीबों को अर्थव्यवस्था से बाहर रखा गया है, जिससे ये बदहाली के शिकार है.
इन्हें असमय मौत और बीमारी घेर लेती है. गरीबी यहां की अब मुख्य समस्या है. 46 मिलियन यानी 4.6 करोड़ लोग आधिकारिक रूप से गरीबी रेखा में आते हैं, जो रोज के 16 डॉलर प्रतिदिन पर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं. करीब 20 मिलियन (दो करोड) लोग 8 डॉलर (480 रुपये) खर्च करते हैं. चैंडी ने यह आंकड़े अपनी रिपोर्ट पुअरेस्ट ऑफ पुअर में दिये हैं.
रिपोर्ट में चैंडी बताते हैं कि जनसंख्या का एक बड़ा तबका आमदनी, कल्याण और सामाजिक सेवाओं के बिना जीने को मजबूर है. विकिसत देशों में गरीबी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. यहां पर लोगोंको उनके पैसे, नाम और उपनामों से पहचाना जाता है. जैसे, बिल गेट्स और वॉरेन बफे के सामने हम कम भाग्यशाली हैं. अमेरिका में राजनेताओं का ध्यान भी हमेशा मिडल क्लास पर होता है. उनकी धारणा है कि गरीबी अस्थाई होती है. जो लोग मेहनत कर रहे हैं, वह समृद्ध भी बन रहे हैं. हालांकि बीती आधी सदी में गरीब से अमीर बनने की रफ्तार काफी सुस्त हुई है.
* 2020 तक दुनिया में होंगे 3,800 अरबपति!
नयी दिल्ली. वैश्विक स्तर पर अरबपतियों की आबादी 2020 तक बढ़ कर 3,800 के पार पहुंच सकती है. आनेवाले वर्षों में प्रौद्योगिकी क्षेत्र से नये धनाढ्य बड़ी संख्या में उभरेंगे. यहां अरबपति वे हैं, जिनकी अपनी शुद्ध संपत्ति एक अरब डॉलर या उससे अधिक है. फिलहाल ऐसे लोंगों का विश्व की 4% संपत्ति पर नियंत्रण है और हर 30 लाख पर एक अरबपति है. वेल्थ-एक्स व यूबीएस अरबपति गणना 2014 के मुताबिक, वैश्विक अरबपति 2020 तक 3,800 को पार कर जायेंगे.
साथ ही, यदि हालात अच्छे रहे तो 2020 तक अरबपतियों की संख्या 4,100 हो जायेगी, जो मौजूदा संख्या से 78 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी. बेहद खराब रहे तो वैश्विक अरबपतियों की संख्या 2020 तक करीब 3,600 रहेगी, जो 56 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.