अबूझमाड़ की प्रसव पद्घति के सामने ‘बौनी’ मॉडर्न गाएनेकोलॅाजी

मो. इमरान खान, नारायणपुर। विशिष्ट आदिम संस्कृति वाले अबुझमाड़ की प्रसव पद्घति के आगे आधुनिक प्रसुति विज्ञान बौना नजर आता है क्योंकि इस पद्घति की राह पर विकसित देश निकल पड़े हैं। माड़ में महिला बैठकर बच्चे को जन्म देती है और इस देशी रीति को अब वैज्ञानिक बताया जा रहा है। यहां एक लकड़ी पर बैठकर महिला का प्रसव होता है जबकि इसके लिए अमेरिका में डेढ़ करोड़ रूपए की स्पेशल चेयर बनाई गई है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में करीब चार हजार वर्ग किमी में फैला अबुझमाड़ भौगोलिक विषमताओं से भरा है। यहां एक बड़े हिस्से में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच नहीं है। प्रसव के लिए गर्भवती को हॉस्पिटल ले जाने में काफी परेशानी है। सदियों से यहां प्रसव के लिए देशी पद्घति ही अपनाई जा रही है। आधुनिक सिस्टम में गर्भवती को बिस्तर पर लिटाया जाता है लेकिन माड़ के देशी तरीके में गर्भवती बैठकर बच्चे को जन्म देती है। गर्भवती महिला एक लकड़ी में बैठती है। इस लकड़ी के उपर छत से दो रस्सियां बंधी होती है।

प्रसव पीड़ा उठने पर महिला लकड़ी पर बैठ जाती है और कसकर रस्सी को पकड़ लेती है। ये रस्सी ‘पेन किलर’ का काम करती है। लकड़ी में बैठकर ही वह बच्चे को जन्म देती है। महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ीं एक अधिकारी का कहना है कि ये वैज्ञानिक पद्घति है और अब इसे विकसित देश अपना रहे हैं। अमेरीका में भी अब बैठाकर प्रसव कराने का प्रचलन शुरू हुआ है। वहां गर्भवती को बैठाने के लिए डेढ़ करोड़ रूपए की चेयर बनाई गई है। अधिकारी की मानें तो बैठकर प्रसव कराने से बच्चे को बाहर निकलने के लिए सही कोण मिलता है। इससे बच्चा मां की कोख से आसानी से बाहर आ जाता है।

एक विशेष झोपड़ी

माड़ में प्रसूति के लिए घर से बाहर एक विशेष झोपड़ी तैयार की जाती है। इसमें गर्भवती के लिए खाने-पीने का सामान, बैठने के लिए लकड़ी और छत पर दो रस्सियां बंधी होती है। कोडलेर गांव की श्रीमती शांति वड़दा एवं श्रीमती सोनाय वड़दा बताती हैं कि इस झोपड़ी को गोण्डी में ‘कुरमा’ कहा जाता है। छत पत्तों से बनी होती है। जब प्रसव पीड़ा होती है तो महिला यहां चली जाती है और बच्चे को जन्म देती है। बच्चा चटाई में आ जाता है।

कलमानार की रहने वाली श्रीमती हीरादेई कोर्राम के मुताबिक जच्चा खुद नाल को काट लेती है और इसे जमीन में गाड़ देती है। इस झोपड़ी में कोई अन्य नहीं जाता है। महिला यहां खाना बनाती है और खाती है। वह बच्चे को वहीं नहलाती है। एक सप्ताह बाद वह अपने घर बच्चे को लेकर आ जाती है। इस एक सप्ताह की अवधि को गोण्डी में ‘पोलो’ कहा जाता है। पोलो का अर्थ होता है छूआछूत। इसी वजह से झोपड़ी में घर कोई नहीं घुसता है।

प्रेशर बढ़ता है

बैठकर प्रसव में आसानी होती है क्योंकि इससे पेट में प्रेशर बढ़ता है। इस तरह की पद्घति से अब विकसित देशों में प्रसव हो रहा है लेकिन उनकी कुशल तकनीक है।

डॉ डीएस ठाकुर, प्रसुति एवं स्त्री रोगविशेषज्ञ, जिला अस्पताल नारायणपुर

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