भारत ने यह दिखाया है कि यदि सब पूरे समर्पण के साथ काम करें, तो स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी सफलताएं मिल सकती हैं। भारत का पोलियो उन्मूलन प्रयास अपनी तरह का सबसे नया और अनूठा विशाल प्रयास था। भारत ने एचआईवी को रोकने में भी अभूतपूर्व दृढ़ता दिखाई और एक दशक में ही इस विपत्ति को रोक दिया। बाल मृत्यु-दर में आए सुधार की चर्चा कम हुई है, लेकिन वह भी काबिले तारीफ है। भारत में वे योजनाएं मौजूद हैं, जो स्वास्थ्य में तेजी से सुधार के लिए जरूरी हैं। खासतौर पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना। हर स्कूल में शौचालय और लड़कियों के अलग शौचालय की योजना से भी बड़ा फर्क आ सकता है। लेकिन भारत में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च खासा कम है- जीडीपी का मात्र 1.1 प्रतिशत, जबकि चीन में यह 2.4 प्रतिशत और ब्राजील में 4.9 प्रतिशत है। भारत को अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था की कार्यदक्षता सुधारने के लिए भी निवेश करना होगा। डाटा को संग्रह कर ‘क्या हो रहा है’ और ‘क्या संभव है’ के बीच की खाई को पाटने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, भारत में बड़े स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल निजी क्षेत्र के हवाले है, लेकिन इस क्षेत्र का पर्याप्त नियमन नहीं है और गुणवत्ता भी खासी खराब है। निवेश के साथ ही इसे भी प्राथमिकता बनाना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
जन-स्वास्थ्य से खुलेगी तरक्की की राह – बिल गेटस्
मैंने 1980 के दशक में जब भारत में आना शुरू किया, तो मैं यहां के आईटी क्षेत्र की बढ़त और उद्यमिता की सोच को देखकर अचंभित हो गया। भारत के एक नियमित पर्यटक के रूप में मैं यह मानता हूं कि देश का भविष्य काफी उज्जवल है। लेकिन एक चीज, जिससे भारत के उज्जवल भविष्य की संभावनाएं और भी बढ़ सकती हैं, वह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अधिक निवेश। माइक्रोसॉफ्ट में 30 साल बिताने के बाद मेरी पत्नी मिलिंडा और मैंने एक फाउंडेशन की स्थापना की, जो दुनिया के सबसे गरीब लोगों के स्वास्थ्य में सुधार और देखभाल के लिए समर्पित है। फाउंडेशन में मैंने यह सीखा कि स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण कारक है, जो अमीर-गरीब सभी समाजों में बड़ा बदलाव ला सकता है। हाल ही में ग्लोबल कमीशन के अर्थशास्त्रियों ने यह पाया है कि राष्ट्र की समृद्धि और स्वास्थ्य में एक गहरा संबंध होता है। इनकी रिपोर्ट बताती है कि कम व मध्यम आय वर्ग वाले देशों में 11 प्रतिशत आर्थिक विकास केवल वयस्क मृत्यु दर में कमी के चलते ही संभव हो पाया। यह बताता है कि एक गतिशील समाज के लिए उसकी जनसंख्या की मानसिक क्षमता और श्रमिकों की उत्पादकता सीधे तौर पर स्वास्थ्य में निवेश से जुड़ी हुई हैं। तेजी से बढ़ती समृद्धि के बावजूद, भारत में कुपोषण की दर विश्व में सबसे अधिक है, जो करोड़ों बच्चों को अपनी संभावनाओं के अनुरूप कामयाबी पाने से रोक देती हैं। कुपोषण देश के आर्थिक विकास को सीमित कर देता है।