कारण, 475 में से 380 सीएचसी और 2000 से ज्यादा पीएचसी एक ही लेबर टेबल के भरोसे हैं। यहां पीड़ा से बिलखती प्रसूता को देखकर आपके आंसू, क्रोध और चीख एक साथ निकल पड़ेंगे। हैरानी यह है कि भास्कर टीम ने जब राजधानी जयपुर संभाग के 36 प्रसव केंद्रों में जाकर वहां के हालात जाने तो तस्वीर भयावह थी। यह हाल राजधानी का है।
एंबुलेंस नहीं, दो कंधों पर स्वास्थ्य केन्द्र तक का सफर
ऊपर की तस्वीर कोटड़ा (उदयपुर) के लुहारी गांव की है। यहां इसी तरह प्रसूताओं को स्वास्थ्य केन्द्रों तक पहुंचाया जाता है। लुहारी से मुख्य सड़क तक का छह किमी का फासला एक बांस और उससे बंधी चादर पर ही तय होता है। मुख्य सड़क पर वाहन मिल जाए तो ठीक, वरना दो कंधों पर यह सफर चलता रहता है। यह हालात तब हैं जब जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रसूताओं को एंबुलेंस के जरिए अस्पताल आने-जाने का अधिकार दिया हुआ है। वहीं जोधपुर के लूणी कस्बे में बिजली जाने पर माेमबत्ती व टॉर्च की रोशनी में डिलीवरी करवानी पड़ती है।
डरा देते हैं ये आंकड़े
> 63000 बच्चों और 5300 प्रसूताओं की मौत होती है हर साल संक्रमण से अस्पतालों में।
> 15% सीएचसी में या तो लेबर रूम और लेबर टेबल नहीं, हैं तो वो बेकार।
> 95% सीएचसी पर एनेस्थीसिया स्पेशलिस्ट नहीं।
> 70% सीएचसी पर स्त्री रोग विशेषज्ञ का अभाव।
> 80% सीएचसी में सर्जन और शिशुरोग विशेषज्ञ नहीं।
योजना : जननी सुरक्षा यानी हर मां को प्रसव के लिए बेहतर माहौल देना।
दावा : 100 फीसदी सुरक्षित प्रसव का, आधुनिक और सुरक्षित लेबर रूम।
…जबकि असलियत यह : प्रसव सुविधाओं के मामले में हमारा राज्य अफ्रीका के पिछड़े देशों से भी पीछे। राज्य के 475 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से सिर्फ एक पर पूरा स्टाफ।