राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों ने योजना आयोग के स्थान पर नई संस्था बनाने के लिए मंगलवार को कई घंटे की मैराथन बैठक की। इसमें योजना आयोग को खत्म करने पर आम सहमति बनी।
योजना भवन में हुई बैठक में नई संस्था के आकार, नाम, ढांचा और राज्यों की भागीदारी आदि को लेकर चर्चा की गई। बैठक में आए विचारों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अवगत कराया जाएगा। योजना भवन में उच्च स्तरीय समिति की हुई बैठक में 64 साल पुराने आयोग को समाप्त कर इसके स्थान पर नई संस्था बनाने की चर्चा की गई।
बैठक में पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जलान, पूर्व राज्यसभा सदस्य एनके सिंह आदि ने हिस्सा लिया। नई संस्था के गठन के लिए विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों के अलग-अलग पैनल थे। बैठक में भाग लेने वालों में डॉं. सुमित्रा चौधरी, डॉ. विजय केलकर, डॉं. नितिन देसाई, डॉ. शंकर एन आचार्य, डॉं. प्रताप भानु मेहता, डॉं. प्रणब सेन शामिल थे।
दो समूहों में बैठक: बैठक दो अलग-अलग समूहों में एक साथ हुई। एक की अध्यक्षता यशवंत सिन्हा ने की जिसमें योजना आयोग के पूर्व सदस्य थे, जबकि दूसरे समूह में राजीव कुमार और प्रणब सेन जैसे अर्थशास्त्री थे। यह पूछने पर कि योजना आयोग राज्यों को योजना राशि कैसे आवंटित करेगा अर्थशास्त्री राजीव कुमार ने कहा ऐसा वित्त आयोग के जरिए किया जा सकता है।
1950 में बना था योजना आयोग
योजना आयोग भारत सरकार की प्रमुख स्वतंत्र संस्थाओं में से एक है। इसका मुख्य कार्य पंचवर्षीय योजनाएं बनाना है। आयोग की स्थापना 15 मार्च 1950 को की गई थी। यह संवैधानिक व्यवस्था के तहत नहीं है। पर यह शक्तिशाली परामर्श दात्री अभिकरण है। प्रधानमंत्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता है। वित्तमंत्री और रक्षामंत्री योजना आयोग के पदेन सदस्य होते हैं।
आलोचनाएं
आलोचक योजना आयोग की समानंतर मंत्रीमंडल या सर्वोच्च मंत्रीमंडल कहते हैं। योजना आयोग किसी भी तरह संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं है। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को योजना आयोग की कार्यशैली से शिकायत रही है।
पीएम ने मांगे थे सुझाव
19 अगस्त को प्रधानमंत्री ने योजना आयोग की जगह नया संस्थान बनाने के लिए लोगों से विचार मांगे।
सुझाव देने के लिए ‘माईगव डाट निक डाट इन’ वेबसाइट पर विशेष खुला मंच बनाया।