कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हड़कंप है। सियासी बवाल के अलावा आर्थिक नुकसान को लेकर बहस छिड़ गई है। ‘इजी मनी ट्रायोलॉजी’ किताब के लेखक विवेक कौल फर्स्टपोस्ट वेबसाइट पर लिखा है, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश की ऊर्जा क्षमता पर दूरगामी असर डालेगा।
सबसे बड़ा खामियाजा बिजली कंपनियों को भुगतान पड़ेगा। कई कंपनियों के प्रोजेक्ट अटक जाएंगे। जिन खदानों में खनन शुरू हो चुका है, वहां खनन कंपनी से जुर्माना वसूला जाएगा। जिन कंपनियों ने अब तक खनन शुरू नहीं किया है, उन्हें और रूकना पड़ेगा। कुल मिलाकर विवाद नहीं सुलझा तो यह स्थिति देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ने वाली साबित हो सकती है।
दरअसल, देश की ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए सरकार चाहती थी कि निजी कंपनियां भी कोल सेक्टर में निवेश करे। 1994-95 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, इसी गरज से सरकार ने कोल माइन्स (नेशनलाइजेशन) एक्ट, 1993 में बदलाव भी किया था। कोशिश थी कि लौह तथा स्टील के साथ ही ऊर्जा उत्पादन में लगी कंपनियां कोल सेक्टर में काम शुरू करें।
बहरहाल, चालू वित्त वर्ष में देश में कोयले की कुल जरूरत 787 मिलियन टन है। जिन खदानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, उनसे 52.93 मिलियन टन कोयला निकाला जाना है। उत्पादन का यह हिस्सा एक तरह से खटाई में है। खास बात यह भी है कि इन 194 खदानों (जिन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है) में से केवल 31 में ही खनन का काम हो रहा है। साफ है यदि देश के कुल कोयला खनन का यह नौ फीसद हिस्सा अटक गया तो ऊर्जा क्षेत्र को भारी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
बाहर से मंगाना पड़ा तो…
मान लिया जाए कि यह कोयला बाहर से मंगाया गया तो 17,300 करोड़ रुपए सालाना का आर्थिक बोझ देश पर पड़ेगा। उदाहरण के लिए इंडोनेशिया से आयात किया जाए तो प्रति टन 3400 रुपए खर्च करना पड़ेंगे। इससे बिजली महंगी होने का खतरा पैदा होगा। बंदरगाहों पर खर्च बढ़ेगा। कोयले को बंदरगाहों से देश के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाने के लिए रेलवे के पास जरा भी बंदोबस्त नहीं हैं।
अटक जाएंगे 02 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऊर्जा, स्टील और सीमेंट क्षेत्र की कंपनियों की सांसे ऊपर-नीचे होने लगी हैं। तीनों सेक्टरों से जुड़ी करीब 02 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं अटकने का खतरा मंडराने लगा है। जो कंपनियों प्रभावित हो सकती हैं, वे हैं- वेदांता, एस्सार, जिंदल स्टील और पॉवर, जेएसडब्ल्यू, एनटीपीसी, सेल, रिलायंस पॉवर, हिंडाल्को, भूषण स्टील व अन्य। एस्सार और हिंडाल्को ने दो हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। एक कंपनी के प्रवक्ता के मुताबिक, कोयले का खनन रोक दिया गया तो ऊर्जा, स्टील और सीमेंट क्षेत्र की कुलक्षमता काफी घट जाएगी।
डूब सकता है बैंकों का अरबों का कर्ज
एक अनुमान के मुताबिक, ऊर्जा के क्षेत्र में विभिन्न बैंकों ने करीब पांच लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज बांट रखा है। इसमें से एक बड़ा हिस्सा उन थर्मल पॉवर कंपनियों का है, जो पूरी तरह से कोयले पर निर्भर रहती हैं। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने अपने कुल लोन का 15 फीसद हिस्सा इन्फ्रास्ट्रचर में लगा रखा है। इसके अलावा 09 फीसद पैसा पॉवर सेक्टर में लगा है।
बैंकरों का कहना है कि अब यह क्षेत्र उनके लिए जोखिम भरा होता जा रहा है। एक बैंकर के मुताबिक, इस सेक्टर में एक कंपनी प्रभावित होती है तो कई कंपनियां चपेट में आ जाती हैं क्योंकि करीब 15 से 20 हजार करोड़ रुपए के बिजनेस पर संकट खड़ा हो जाता है।
किसके कार्यकाल में कैसा आवंटन
नरसिम्हा राव (1993-96) – 3 सरकारी, 2 निजी कोल ब्लॉक आवंटन
अटलबिहारी वाजपेयी (1996-2004) – 14 सरकारी, 23 निजी कोल ब्लॉक आवंटन
मनमोहन सिंह (2004-2011) – 82 सरकारी, 80 निजी कोल ब्लॉक आवंटन
‘सभी कोलमंत्री दोषी’
मेरी नजर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ऊर्जा क्षेत्र पर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह कुछ कोल ब्लॉक का मामला है। हां, इससे भविष्य की आवंटन प्रक्रिया को साफ-सुथरा बनाने में जरूर मदद मिलेगी। – विनायक चटर्जी, चेयरमैन, फीडबैक इन्फ्रास्ट्रक्चर
मैं किसी एक शख्स को दोषी नहीं ठहराऊंगा, लेकिन 2004 के बाद अनियमितताएं शुरू हुईं। इसलिए उसके बाद से सभी कोयला मंत्री दोषी हैं। उन्होंने कोल ब्लॉक आवंटन की प्रक्रिया का पालन नहीं किया। – पीसी प्रकाश, पूर्व कोयला सचिव
यह केंद्र सरकार का विषय है। कोयला खदानों का आवंटन कागज पर हुआ था और कागज पर ही रद्द भी हो गया। जो चीज भौतिक रूप से है ही नहीं, उसका राज्य की खनन व्यवस्था पर भी असर नहीं होगा। – एमके त्यागी, छत्तीसगढ़़ के खनिज सचिव
कोल आवंटन का रद्द होना उन लोगों के लिए राहत की बात है, जो इन कोयला खदानों का विरोध कर रहे हैं। जहां यह कोयला खदान आवंटित हुए हैं, वे घने जंगल के इलाके हैं और इन जंगलों में रहने वाले आदिवासियों की पूरी आजीविका इन्हीं जंगलों पर निर्भर है। – आलोक शुक्ला, सामाजिक कार्यकर्ता
जंगलों से खनन का खतरा अभी टला नहीं है। बिजली उत्पादन का हवाला दे कर कोल ब्लॉक का आवंटन फिर से हो जाए तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जिन इलाकों को कोल ब्लॉक के लिए आवंटित किया गया था, ये वे इलाके हैं, जो जैव विविधता से भरपूर हैं।
– मीतू गुप्ता, वन्यजीव विशेषज्ञ
कोयले की कहानी अब तक
जुलाई 1992 : कोयला मंत्रालय ने निजी ऊर्जा कंपनियों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर खनन के प्रस्तांव देने के लिए स्क्रीयनिंग कमेटी बनाने का आदेश दिया। कमेटी ने बड़े प्रोजेक्ट को प्राथमिकता देने की गाइडलाइन्स् बनाईं।
14 जुलाई 1992 : कई कोल ब्लॉदक्सइ की पहचान की गई, जो सीआईएल और एससीसीएल के उत्पापदन योजना में शामिल नहींथे।143 की सूची बनाई गई।
1993 से 2010 तक : 1993 से 2005 के बीच 70 कोयला खदानें और ब्लॉसक आवंटित किए गए। 2010 तक 216 ब्लॉसक आवंटित किए गए। इनमें से 24 को अलग-अलग समय पर वापस ले लिया गया, जिससे आवंटन की संख्या प्रभावी रूप से घटकर 194 हो गई।
मार्च 2012 : कैग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में सरकार पर आरोप लगाया कि उसने 2004 से 2009 के बीच अप्रभावी रूप से आवंटन किया, जिससे आवंटियों को करीब 10.7 लाख करोड़ का मुनाफा हुआ।
29 मई 2012 : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोटाले में दोषी पाए जाने पर इस्तीबफा देने की पेशकश की। वह वर्ष 2006 से 2009 के बीच कोयला मंत्री थे।
31 मई 2012 : सीवीसी ने दो भाजपा सांसदों द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई जांच के आदेश दिए।
जून 2012 : आवंटन की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए कोयला मंत्रालय ने आंतरिक मंत्रियों का पैनल बनाया और फैसला किया कि या तो आवंटन रद्द कर दिया जाएगा या बैंक गारंटी जब्त होगी। तब से अब तक सरकार 80 कोल फील्डद को वापस ले चुकी है, जबकि 42 मामलों में बैंक गारंटी जब्तआ हो चुकी है।
अगस्त 2012 : कैग की अंतिम रिपोर्ट संसद में पटल पर रखी गई। इसमें 1.86 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया गया।
27 अगस्त 2012 : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि कैग त्रुटिपूर्ण है और इसकी टिप्प णी साफतौर पर विवादित है।
6 सितंबर 2012 : सुप्रीम कोर्ट में सभी 194 आवंटनों को रद्द करने के लिए याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की निगरानी शुरू की।
मार्च 2013 : शीर्ष अदालत ने सीबीआई से कहा कि वह अपनी जांच को सरकार के साथ साझा न करे।
23 अप्रैल 2013 : कोयला और स्टीपल पर स्था ई समिति ने संसद में एक रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया कि वर्ष 1993 से 2008 के बीच किए गए आवंटन अनाधिकृत तरीके से किए गए हैं। इसमें कहा गया कि जिन जगहों पर उत्पादन शुरू नहीं हुआ है, उनका आवंटन निरस्तह कर देना चाहिए।
26 अप्रैल 2013 : सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हाा ने हलफनामा दायर किया। इसमें कहा गया था कि जांच की रिपोर्ट को तत्का लीन कानून मंत्री के साथ साझा किया गया था।
जुलाई 2014 : सुप्रीम कोर्ट ने कोल आवंटन मामलों की सुनवाई के लिए स्पेकशल सीबीआई कोर्ट गठित की।