हजार में 46 बच्चों की हो रही मौत, केंद्र से मांगे 56 करोड़

रायपुर (निप्र)। राज्य में हर साल करीब 4 लाख बच्चे जन्म लेते हैं और इनमें से लगभग 18 हजार बच्चों की मौत हो जाती है। भारत सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में शिशु मृत्युदर का प्रतिशत प्रति हजार 46 है। अब राज्य सरकार ने नया लक्ष्य तैयार किया है, जिसमें प्रति हजार 46 बच्चों की मौत को 2017 तक घटाकर 30 तक पहुंचना है, जिसके लिए केंद्र से सत्र 2014-15 के लिए 56 करोड़ रुपए मांगे गए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 18 करोड़ अधिक है।

स्वास्थ्य विभाग ने मातृ और शिशुमृत्यु को ऑनलाइन वेबसाइट पर जारी करने के लिए सभी जिला सीएमएचओ को निर्देशित किया है। शिशु मृत्यु पर मां का नाम, पूरा पता और मौत का कारण एक ऑनलाइन फॉर्मेट में भरना है, लेकिन कुछ ही जिले इस निर्देश का पालन कर रहे हैं। साल 2013-14 में वेबसाइट के मुताबिक सिर्फ 1612 शिशुओं की मौत हुई, जबकि शिशु मृत्युदर के मुताबिक यह आंकड़ा 18हजार के करीब पहुंचता है। वहीं इस साल यानी 2014-15 में तो 10 जिलों ने अप्रैल से शुरू हुए सत्र से फॉर्मेट ही नहीं भरा है। यानी साफ है कि जिले जानकारी देने से कतरा रहे हैं। इनमें आदिवासी, जिलों के साथ-साथ बिलासपुर, दुर्ग, कवर्धा, कोरबा जैसे बड़े जिले भी शामिल हैं। हालांकि विभाग इसे जल्द अपडेट करने की बात कह रहा है।

आखिर ऐसी स्थिति क्यों…-

प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकारों की कई योजनाएं संचालित हो रही हैं, जो शिशु मृत्युदर को कम करने के लिए हैं, जिनमें गर्भवती को अस्पताल तक लाने ले जाने, उसके नवजात बच्चों को एक साल तक अस्पताल लाने ले जाने के लिए 102 महतारी एक्सप्रेस। जननी शिशु सुरक्षा योजना, कुपोषण मुक्त कार्यक्रम और अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य बाल कार्यक्रम। इसके बाद भी शिशु मृत्युदर जिस तेजी से घटनी चाहिए, वह नहीं घट रही।

स्वास्थ्य विभाग इसके पीछे आदिवासी, नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में डॉक्टर्स की कमी को कारण बता रहा है। यह भी कह रहे हैं कि गांव में हो रही शिशुओं की मौत की जानकारी नहीं पहुंच पा रही है। इन सभी कमियों को दूर करने के लिए 13 स्थानों में स्पेशल न्यू बर्न क्लिनिक की स्थापना की गई है। जहां गंभीर बच्चों को रखा जाएगा और फिर स्वास्थ्य होने पर परिवार को सौंप दिया जाएगा।

शासन की वेबसाइट ही अपडेट नहीं-

2013-14- 1612 शिशुओं की मौत

सरगुजा- 128, बिलासपुर- 02, रायगढ़- 124, राजनांदगांव- 26, दुर्ग- 09, रायपुर – 262, बस्तर- 65, कोरिया- 82, चांपा- 263, कोरबा- 55, जशपुर- 27, कवर्धा- 34, महासमुंद- 95, धमतरी- 26, कांकेर- 55, नारायणपुर- 02, बीजापुर- 01, सुकमा- 01, कोंड़ागांव- 12, बलोदाबाजार- 182, गरियाबंद- 02, बेमेतरा- 64, बालोद- 03, मुंगेली- 54, सूरजपुर- 36, बलरामपुर- 02, दतेंवाड़ा का आंकड़ा नहीं है। (जानकारी सीजी गर्वमेंट की वेबसाइट से ली गई है।)

2014-15- 507 शिशुओं की मौत

सरगुजा- 07, रायगढ़- 32, राजनांदगांव- 27, रायपुर – 76, बस्तर- 13, कोरिया- 92, चांपा- 62, जशपुर- 17, महासमुंद- 10, बलोदाबाजार- 95, बेमेतरा- 26, मुंगेली- 03, सूरजपुर- 47, बलरामपुर, दतेंवाड़ा, दुर्ग, बिलासपुर, कवर्धा, कोरबा, धमतरी, कांकेर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, बीजापुर, सुकमा, गरियाबंद, बालोद का आंकड़ा नहीं है। (जानकारी सीजी गर्वमेंट की वेबसाइट से ली गई है।15 जिलों की जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध ही नहीं है। आंकड़ा जुलाई तक का है।)

डॉक्टर्स की कमी बड़ी समस्या

प्रदेश में शिशु मृत्युदर हजार में 46 है, जबकि इसे 30 होनी चाहिए, हमारा लक्ष्य 2017 तक इसे प्रति हजार 30 तक लेकर आना है, इसलिए शहर से लेकर ग्रामीण स्तर तक के स्वास्थ्य सिस्टम को दुरुस्त किया जा रहा है। हॉस्पिटल डिलेवरी पॉइंट बनाए गए हैं, ट्रेनिंग कर मेडिकल स्टाफ को अपग्रेड किया जा रहा है। यह सच है कि ग्रामीण क्षेत्रों, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सवा लाख में भी डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं। यह बड़ी समस्या है, इसलिए 13 स्थानों में स्पेशल केयर यूनिट संचालित की गई हैं।

-डॉ. नेतराम बेक, राज्य नोडल अधिकारी, शिशु रोग कार्यक्रम

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