आरटीआई कार्यकर्ता भाविन जैन, कुणाल शुक्ला ने बताया कि बीपीएल कार्डधारी सैकड़ों की संख्या में शिकायत कर रहे हैं। इसके कारण उनके मामलों की सुनवाई प्रभावित हो रही है। राज्य सूचना आयोग से मिली जानकारी के अनुसार, पिछले तीन महीने में फर्जी तरीके से शिकायत करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं ने 100 से ज्यादा शिकायतें वापस ली हैं। अधिकारियों ने सवाल किया कि जब कोई बीपीएल कार्डधारी सूचना नहीं मिलने पर सूचना आयोग में अपील करता है, तो वह बिना सूचना मिले अपील वापस क्यों लेता है। इसके पीछे आरटीआई के दुरुपयोग की आशंका जताई जा रही है। बताया जा रहा है कि कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने शासकीय अधिकारियों की व्यक्तिगत जानकारी विभागों से मांगी। जब उन्हें अधिकारियों की व्यक्तिगत जानकारी नहीं दी गई, तो उन लोगों ने राज्य सूचना आयोग में अपील कर दी।
छह महीने में निपटाई एक हजार से ज्यादा शिकायतें
राज्य सूचना आयोग से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त सरजियस मिंज ने दिसंबर 2013 से जुलाई 2014 तक 583 मामलों में फैसला सुनाया। बताया जा रहा है कि इसमें से 70 फीसदी मामले या तो सरकारी कर्मचारियों की व्यक्तिगत जानकारी से जुड़ी थीं, या काल्पनिक सवालों पर आधारित थी। कई फैसलों में यह टिप्पणी भी दर्ज की गई है कि काल्पनिक सवालों का जवाब विभाग की ओर से नहीं दिया जा सकता, इसलिए मामले को खारिज किया जाता है। आयोग के अधिकारियों के अनुसार, इसमें से अधिकांश मामले बीपीएल कार्डधारी शिकायतकर्ताओं के हैं।
क्यों बढ़ रही हैं शिकायतें
राज्य सूचना आयोग के अधिकारियों के अनुसार, बीपीएल कार्डधारियों को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत निःशुल्क जानकारी उपलब्ध करानी है। सामान्य तौर पर विभाग में आरटीआई दर्ज कराने के लिए दस रुपए का शुल्क लगता है। उसके बाद जानकारी के लिए प्रति पेज दो रुपए का भुगतान करना पड़ता है। बीपीएल कार्डधारियों को निःशुल्क होने के कारण वे बड़े पैमाने पर शिकायत करते हैं। अब आयोग के अधिकारी बीपीएल कार्डधारियों की जांच की भी तैयारी कर रहे हैं। कई मामलों में कलेक्टर और निगम कमिश्नर से सत्यापन कराने के लिए सूचना आयोग की ओर से पत्र भेजा गया है।