अल-नीनो का खतरा, एशिया में सूखा तो दक्षिण अमेरिका में भारी बारिश की उम्मीद

प्रशांत महासागर से मिल रहे संकेत को देखते हुए मौसम एजेंसियां अनुमान लगा रही हैं कि एक बार फिर अल नीनो का खतरा पनप रहा है। ऑस्ट्रेलियाई मौसम विभाग के मुताबिक अल-नीनो के असर से एशिया में सूखा और दक्षिण अमेरिका में भारी बारिश की संभावना बन रही है।

ऑस्ट्रेलियाई एजेंसी के मुताबिक कम से कम 50 फीसदी अल-नीनो की संभावना है। अल-नीनो का असर सितंबर से दिखने को मिल सकता है। गोल्डमैन सैक्स ग्रुप के मुताबिक अल-नीनो से सूखा या भारी बारिश के आसार से एग्री बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। एजेंसी के अनुसार पाम तेल, कोको, कॉफी और गन्ने की फसल को अल-नीनो से खतरा है।

क्यों मंडरा रहा है अल-नीनो का खतरा

मध्य और पूर्वी भूमध्य प्रशांत महासागर की सतह गर्म हो रही है। ऑस्ट्रेलिया की एजेंसी के मुताबिक समुद्र की सतह पर हवाएं कमजोर हुई है। अगर कम हवा का दौर जारी रहता है तो इससे अल-नीनो की संभावना और बढ़ जाएगी। उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में औसत से ज्यादा गर्मी की वजह से हर दो से सात साल के अंतराल में अल-नीनो का प्रभाव देखने को मिलता है। इससे पहले 2009-2010 में इसका असर देखने को मिला था।

मौसम विभाग ने घटाया अपना पूर्वानुमान

इस साल मानसून पिछले पांच साल में सबसे कमजोर रहा है। सरकार ने इस साल अनुमान से कम बारिश होने के संकेत दिए है। कमजोर बारिश कृषि उत्पादन को कम कर सकता है। मौसम विभाग ने बारिश के पूर्वानुमान को 93 फीसदी से घटाकर 87 फीसदी कर दिया है। वहीं इस मानसून सीजन के दूसरे सत्र में 95 फीसदी बारिश होने का अनुमान लगाया है। आईएमडी के महानिदेशक एल.एस. राठौर के मुताबिक चार महीने के मानसून के दूसरे स्पेल में अच्छी बारिश होगी। साथ ही अगस्त में 96 फीसदी बारिश का पूर्वानुमान है।
लॉंग फॉरकास्ट डिविजन के प्रमुख डीएस पाइ के मुताबिक इस साल आंध्र प्रदेश, गुजरात और मराठवाड़ा में कम बारिश हुई है।

कैसी है मानसून की चाल

लगातार पाचवें दिन देश में सामान्य से कम बारिश हुई। मंगलवार को पूरे देश में 7.2 मिमी बारिश हुई जो कि सामान्य से 22 फीसदी कम है। 12 अगस्त को चार में से सिर्फ एक रीजन में ही सामान्य बारिश हुई जबकि तीन रीजन में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई। मंगलवार तक देश में 463.3 मिमी बारिश हुई है जो कि सामान्य से 18 फीसदी कम है।

पिछले पांच सालों में कितनी हुई बारिश

2009 में अल-नीनो की वजह से देश में सूखा पड़ा था उस वक्त सामान्य से 22 फीसदी कम बारिश हुई थी। सूखे के ठीक अगले साल यानि 2010 में 2 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। 2011 में भी सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज की गई। वहीं 2012 में देश में सामान्य से 7 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड की गई। 2013 में 6 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। इस सीजन में 12 जुलाई तक देश में सामान्य से 18 फीसदी कम बारिश हुई है। जिसके कारण यह साल खरीफ फसलों के लिए बेहद खराब साबित हो रहा है।

कितनी हुई है खरीफफसलों की बुआई

7 अगस्त को खत्म हफ्ते में खरीफ फसल की बुआई 14.7 फीसदी बढ़ी है हालांकि बुआई का रकबा पिछले साल के मुकाबले अभी भी कम है। गुरुवार तक पूरे देश में खरीफ फसलों की बुआई 803.3 लाख हेक्टर में हुई है। इससे पिछले हफ्ते तक 700.6 लाख हेक्टेयर में बुआई हो पाई थी। कृषि मंत्रायल के मुताबिक एक अगस्त को खत्म हफ्ते में बुआई 32.5 फीसदी की दर से बढ़ी थी। इस खरीफ सीजन में अभी भी बुआई पिछले साल के मुकाबले 9 फीसदी कम है। बारिश अच्छी होने के बावजूद इस साल खरीफ फसलों की बुआई घटेगी क्योंकि ज्यादा तर फसलों की बुआई का समय खत्म हो चुका है।

देश में गुरुवार तक 47.2 लाख हेक्टेयर में गन्ने की बुआई हुई है। पिछले साल 50.3 लाख हेक्टेयर में हुई थी। सोयाबीन की बुआई 118.8 लाख के मुकाबले 103.1 लाख हेक्टेयर में ही हो पाय है। मूंगफली के रकबे में भी कमी आई है। देश के किसानों ने 31.9 लाख हेक्टेयर में बुआई की है पिछले साल 37.7 लाख हेक्टेयर में हुई थी। इस खरीफ सीजन में मोटे अनाज की बुआई अभी तक 177.2 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 140.2 लाख होक्टेयर में ही हो पाई है। हालांकि कैस्टर सीड की बुआई बढ़कर 3,59,400 हेक्टेयर में हुई है। पिछले साल समान अवधि में 3,53,500 हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

खरीफ मक्के की बुआई 77.3 लाख हेक्टेयर से घटकर 66.7 लाख हेक्टेयर रह गई है। वहीं अच्छी बारिश होने की वजह से कपास की बुआई 112.2 लाख हेक्टेयर में पहुंच गई है जो कि पिछले साल 110.1 लाख हेक्टेयर में हुई थी। चालू खरीफ सीजन में ज्वार की बुआई 20.2 लाख हेक्टेयर से घटकर 14.5 लाख हेक्टेयर रह गई है।

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