डिजिटल पंचायत सिर्फ सपना नहीं, जरूरत भी- देवेन्द्र सिंह भदौरिया

पंचायत शासन की सबसे निचली इकाई हैं. सरकार गांवों की बेहतरी के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. लेकिन आज भी देश की अधिकतर पंचायतें सूचना क्रांति के इस दौर में भी सरकार की योजनाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए बाबुओं या पंचायत प्रतिनिधियों पर निर्भर है. इन्हीं सब लोगों को सही सूचना मुहैया कराने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठाया है डिजिटल फाउंडेशन ने, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में इ-पंचायत के नाम से कार्यक्रम चला रहा है. पेश है डिजिटल पंचायत कार्यक्रम के संस्थापक निदेशक देवेंद्र सिंह भदौरिया से पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह की विशेष बातचीत :

देश में सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार की बात कही जा रही है? शासन की सबसे निचली इकाई पंचायत है, ऐसे में गांव को सूचना संपन्न बनाने के लिए सरकार की योजनाओं और प्रयासों को आप किस रूप में देखते हैं?
देखिए, सूचनाएं जरूरी हैं, इस बात से शायद ही किसी को इनकार होगा. सूचनाओं के संप्रेषण से जनता सजग होती है, अपने अधिकारों की मांग करती है, सवाल उठाती है, सरकार और राजनेताओं के साथ जुड़ती है, यह बात सौ फीसदी सही है. लेकिन सवाल यह है कि हम शासन की सबसे निचली इकाई अर्थात गांव और पंचायत को किस हद तक सूचना संपन्न बनाने में कामयाब हुए हैं. आज देश में 6,35,000 गांव हैं, 2,50,000 लाख पंचायत है. 6000 प्रखंड हैं और 672 जिले हैं. इन जगहों को सूचना संपन्न बनाने के लिए और सूचनाओं प्राप्ति का अधिकार आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए एक बृहत और समयबद्ध योजना की जरूरत है. लेकिन क्या ऐसा हो पाया है? इसके लिए मिशन मोड में काम करने की जरूरत होगी. आज हमारे यहां जो पंचायतें हैं, उन सबको एक सचिवालय के तौर पर काम करने की जरूरत है. लेकिन उनके पास इसके लिए संस्थागत ढांचे का अभाव है. जहां तक पंचायतों को डिजिटल किये जाने का सवाल है तो इस दिशा में सरकार के स्तर पर केवल 268 वैसे जिले जो बैकवर्ड रिजन ग्रांट फंड के तहत आते हैं, सिर्फ उनके लिए प्रावधान है कि यहां की हर पंचायत में कंप्यूटर हो. पंचायत को ऑनलाइन किया जाये और सरपंचों और पंचायत प्रतिनिधियों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाए. इसके लिए फंड की भी व्यवस्था की गयी है. जिला मजिस्ट्रेट को इस कार्यक्रम का संरक्षक बनाया गया है, जिसके ऊपर पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ने और इ-पंचायत बनाने की जवाबदेही है. लेकिन इन जिलों में भी अधिकतर लोगों को इस तरह के प्रावधान की जानकारी नहीं है और इसको प्रचारित भी नहीं किया गया है. इसके अभाव में गांवों के लोगों को सूचनाओं से जुड़ने, हासिल करने की सुविधा नहीं है. जब तक हम हर गांव को न्यूनतम वैंडविथ नहीं देंगे तक इ क्रांति नहीं आ सकती और इ विलेज और इ पंचायत का सपना यथार्थ नहीं हो सकता.

पंचायत को इ-पंचायत बनाने के क्या लाभ हैं? इससे वैसे लोग जो कि गरीब हैं, कम-पढ़े लिखे हैं, उनको डिजिटल पंचायत का क्या लाभ होगा? इसकी जरूरत क्या है?
सरकार ने पंचायती व्यवस्था इसलिएलागू की थी कि समाज के सबसे निचले तबके का सशक्तीकरण हो सके. पंचायतों में केंद्र और राज्य सरकारों की बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं, जिसके जरिए सरकार का पैसा गांव तक पहुंचता है कि लोगों की जिंदगी में बदलाव आये. लेकिन लगातार यह बातें सामने आयी हैं कि ज्यादातर पैसा उन लोगों तक नहीं पहुंचा जो कि इसके हकदार थे. यदि कुछ मिला भी तो पंचायत प्रतिनिधियों की दया से. होना यह चाहिए कि उन्हें उनका पूरा हक मिले क्योंकि सरकार ने उन्हीं के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के तहत पैसा भेजा है. अगर पंचायतें डिजिटल होंगी तो सरकार की योजनाओं के विषय में लोगों को जानकारी होगी. गांव-पंचायत में चलाये जाने वाले कार्यक्रमों मसलन मनरेगा, इंदिरा आवास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मिड डे मील आदि कई ऐसी योजनाएं है जो गांवों में चलायी जाती हैं. शिक्षा से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विकास की 29 ऐसी योजनाएं है, जिन्हें लागू करने के लिए हम पंचायतों पर निर्भर हैं. देश के ग्रामीण तभी इन योजनाओं का लाभ उठा पायेंगे जब उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी होगी. अगर पंचायतों में फंड की स्थिति को देखें तो हरेक पंचायत में औसतन दो से ढाई करोड़ का फंड आता है. अगर गांववासियों को इन योजनाओं की सही जानकारी दी जाये, इनमें खर्च की जाने वाले राशि होने वाले काम के विषय में जानकारी हो तो वे अपने अधिकार मांग सकते हैं. यदि हर पंचायत में इंटरनेट हो, उनकी अपनी वेबसाइट हो, उस वेबसाइट में गांव-पंचायत से जुड़ी सभी सूचनाओं, योजनाओं, उनके निष्पादन की स्थिति का वर्णन हो तो गांव को इससे काफी फायदा होगा. जहां तक साक्षरता का प्रश्न है जब इस देश में मोबाइल आया तो कहा गया कि गांव के अनपढ़ लोग कैसे इस्तेमाल करेंगे लेकिन स्थिति ऐसी है आज गांव में बैठा व्यक्ति न सिर्फ इसके जरिए संवाद कर रहा है बल्कि इससे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपने जीवन को बेहतर बना रहा है.

क्या सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है? सरकार की तरफ से कोई पहल की गयी है?
पंचायतों को लेकर ऐसी कोई विशेष योजना नहीं शुरू की गयी है,लेकिन सरकार ने ‘संपर्क’ के नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है जिसका उद्देश्य बड़े अधिकारी से लेकर गांव के स्तर पर काम करने वाली आशा वर्कर से जुड़ना है. सरकार इस कार्यक्रम के जरिए दिल्ली में बैठकर ही मोबाइल या टैबलेट मुहैया कराकर लोगों से जुड़ा रहना चाहती है. सरकार के करोड़ों कर्मचारी अगर इंटरनेट से जुड़ते हैं, उन्हें सरकार की गतिविधियों की जानकारी होती है तो न सिर्फ उनकी प्रभाविता बढ़ेगी, कार्यक्षमता का विस्तार होगा बल्कि भ्रष्टाचार पर भी नकेल कसा जा सकता है. भ्रष्टाचार मिटाने का एक ही तरीका है कि अधिक से अधिक मशीनीकरण को बढ़ावा दिया जाए. नरेंद्र मोदी की सरकार इस संदर्भ में स्पष्ट सोच रखते हुए सरकार के सभी मंत्रलयों को सोशल मीडिया से जुड़ने को कहा है. इतना ही नहीं पिछले चुनाव में भी आपने देखा होगा कि कैसे विभिन्न राजनीतिक दल सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर जनता से जुड़ें और उन्हें उनका फायदा भीहुआ.

align="justify"> पिछले चुनाव में इस बात को लेकर बहस चली कि शौचालय जरूरी है या मोबाइल.. क्या कहेंगे?
मोबाइल ने लोगों के जीवन को सरल बनाया है. आज मोबाइल का इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी है. मोबाइल को विकास का परिचायक माना जा रहा है. इसके लिए हम जनता से जुड़ी सेवाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचा सकते हैं. लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि देश के लोगों को शौचालय की जरूरत नहीं है. हर घर शौचालय का लक्ष्य उतना ही जरूरी है, जितना हर हाथ मोबाइल का. दोनों की अपनी-अपनी भूमिका है. इसलिए इस तरह के बहस का कोई मतलब नहीं है.

आप डिजिटल पंचायत कार्यक्रम से जुड़े हैं. इस कार्यक्रम के विषय में विस्तार से बतायें?
जैसा कि मैंने पहले कहा कि अभी देश की बृहत भौगोलिक स्थिति के मद्देनजर सभी पंचायतों को इ-पंचायत बनाना एक सपना ही है. लेकिन इस सपने को सीमित साधनों के बावजूद यथार्थ में बदलने के लिए नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया और डिजिटल एम्पावरमेंट फांउडेशन अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. दरअसल डिजिटल पंचायत एक वेब आधारित गतिशील डिजिटल इंटरफेस है जो भारत में पंचायतों के बारे में जानकारी मुहैया कराती है. हम डिजिटल पंचायत नाम से एक कार्यक्रम शुरू कर यह कोशिश कर रहे हैं कि हर पंचायत की अपनी एक बेबसाइट बने इसमें पंचायत से जुड़े लोगों का प्रोफाइल, इमेल एड्रेस के साथ ही पंचायत में जारी विकास कार्यक्रमों का पूरा विवरण हो. इसके अलावा हर 20-25 पंचायतों के बीच एक डिजिटल पंचायत केंद्र बने जहां जाकर लोग डिजिटल संसाधनों का इस्तेमाल सभी सरकारी योजनाओं की पूरी जानकारी हासिल कर सकें. गड़बड़ी की शिकायत दर्ज कर सकें. इसके साथ ही गांवो में ‘पोर्टल पंचायत’ सूचना एवं संचार मंच का काम करेगा. इसके जरिए स्थानीय सामग्री, संस्कृति, स्थानीय प्रथाओं, स्थानीय मुद्दों के विषय में लोगों को अवगत कराया जायेगा. इतना ही नहीं यदि पंचायत का अपना पोर्टल होगा तो स्थानीयता के दायरे से बाहर जाकर लोग इससे जुड़ सकेंगे और अपनी बात देश-दुनिया के लोगों के समक्ष रख सकेंगे.

क्या बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में पंचायतों को डिजिटल बनाने के लिए आपने कोई काम किया है?
हमने बिहार और झारखंड दोनो जगहों पर पायलट परियोजना के तहत काम किया है. बिहार में चंपारण से यह काम शुरू किया. नौतन ब्लॉक की अधिकतर पंचायतें और चंपारण में 35-50 पंचायतें ऑनलाइन हो चुकी है. इनकी वेबसाइट है. अन्य जिलों में भी कई पंचायतों को पायलट प्रोजेक्ट के तहत ऑनलाइन करने का प्रयास हो रहा है. मुजफ्फरपुर जिले के सनौली में नरेगा के कार्यक्रमों की जानकारी प्राप्त करने के लिए डिजिटल सेंटर बनाया गया है. जहां दूरस्थ गांवों से आकर ग्रामीण नरेगा कार्यक्रम के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं. इसी तरह झारखंड के दुमका जिले में, रांची में कई पंचायतों को डिजिटल किया गया है. गिरिडीह जिले की बिरनी पंचायत को वाइफाई से जोड़ा गया है. देश के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 550 पंचायत को हमारी संस्था ने अपने स्तर पर डिजिटल बनाया है. इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए हम प्रत्येक साल राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटलसम्मिट करते हैं. सबसे बड़ी बात है कि जिन पंचायतों की अपनी वेबसाइट बनायी गयी है, वहां के प्रतिनिधि भी हाइटेक हो रहे हैं. इसके जरिए आम जनता से लेकर अफसरों तक सबसे संपर्क साधना आसान हो गया है. मुखिया से बात करना, योजनाओं की जानकारी पहुंचाना, योजनाओं के कार्यान्यवयन की परेशानियों को साझा करना आसान हो गया है. यह एक सकारात्मक बदलाव है.

 

देवेंद्र सिंह भदौरिया

संस्थापक, डिजिटल भारत कार्यक्रम

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