यहां मध्य भारत में सरंक्षण के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय को दायित्व सौंपा गया। विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात व झारखंड की भाषाओं और बोलियों के संरक्षण के लिए योजना तैयार करेगा। इसके लिए केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर में कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का उपयोग कर डाटा बेस, डाटा सेंटर व नए सॉफ्टवेयर के माध्यम से बोली, भाषाओं के व्याकरण को सहेजा जाएगा। इसके लिए तीन करोड़ साठ लाख स्र्पए स्वीकृत किए गए हैं। इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो चुका है।
देश में तेजी से बोली और भाषाओं के विलुप्त होने के कई कारण हैं। इसमें आर्थिक सुधार, नौकरी के लिए परंपरागत भाषा का कम प्रयोग, वैश्वीकरण, छोटी भाषाओं के बहुमत का संकट, आदिवासी क्षेत्रों में विकास व भाषा का हस्तांतरण न हो पाना शामिल है। इन कारणों से लोग अपनी भाषाओं या बोलियों से दूर होते जा रहे हैं।
यूजीसी ने बोली और भाषाओं के संरक्षण का महत्वपूर्ण जिम्मा गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय को सौंपा है। छत्तीसगढ़ी बोली व आदिवासी संस्कृति को बचाने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। इसके अलावा आठ राज्यों के लिए हमें काम करना है।
प्रो.पीके बाजपेयी, प्रदेश प्रमुख, समन्वयक, यूजीसी कोर कमेटी
कोर कमेटी
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से भाषाओं को बचाने एक कोर कमेटी भी बनाई गई है। इसके लिए भारत में चार जोन बनाए गए हैं। इसमें दूसरे जोन के रूप में मध्य भारत के सभी आठ राज्यों को शामिल किया गया है। कमेटी में राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में शांति निकेतन से यूएन सिंह, प्रो. आईडी तिवारी, प्रो.पीसी दास, डॉ. बलराम उराव, प्रो.मनीष श्रीवास्तव, डॉ.यूएन सिंह, प्रो. मुखर्जी, प्रो. प्रतिभा मिश्रा, अर्थशास्त्र से प्रो.मनीष दुबे, राजनीति शास्त्र से अनुपमा सक्सेना शामिल हैं।