जिला मुख्यालय से करीब 27 किलोमीटर दूर स्थित रतनपुर गांव में अधिकांश परिवार आदिवासी वर्ग के हैं। यहां के ग्रामीण अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना तो चाहते हैं, लेकिन गांव में सिर्फ प्राथमिक शाला ही होने के कारण आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को मगरधा जाना पड़ता है।
ऐसे में बरसात के मौसम में माचक नदी पार करना बेहद मुश्किल होता है। नदी में ज्यादा पानी होने की दशा में बच्चे कई दिनों तक स्कूल नहीं पहुंचते। खास बात यह है कि इन बच्चों के माता बच्चों की पढ़ाई के लिए खासे चिंतित रहते हैं। ग्रामीण कोमल सिंह इवने ने बताया कि बच्चों को पढ़ा-लिखाकर अच्छे इंसान बनाना चाहते हैं। इसलिए उनकी जिंदगी को दांव पर लगाकर पढ़ाई कराते हैं।
जुगाड़ की नाव
ग्रामीणों ने बारिश के दिनों में बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तीन जुगाड़ की नाव बनाई हैं। जिसमें ट्यूब, बांस और रस्सी की मदद ली है। इन जुगाड़ की नाव चलाने के लिए ग्रामीणों ने चार लोगों को तैयार किया है। जो बच्चों को दोनों समय नाव से पार कराते हैं। नाव चलाने वाले मिश्रीलाल और मुकेश ने बताया कि नदी में तेज बहाव रहता है, ऐसे यह कदम जोखिम भरा होता है, लेकिन बच्चों का स्कूल जाना भी जरूरी होता है। बच्चों को पार कराने वाले युवक कभी तैरकर तो कभी पैदल चलकर बच्चों को इस पार से उस पार और कभी उस पार से इस पार करते हैं।
हमारी मजबूरी है
मगरधा में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले अजय उईके का कहना है कि स्कूल जाना हमारी मजबूरी है। पढ़लिखकर अच्छा इंसान बनना है। इसलिए हम रोजाना ट्यूब की नाव के सहारे अपनी जिंदगी दांव पर लगाते हैं। उन्होंने मांग की है कि शासन को नदी पर पुल बनाना चाहिए या फिर तत्कालिक व्यवस्था के लिए एक इंजन वाली नाव भेजी जाए। छात्रा आरती उईके का कहना है कि रोजाना सभी बच्चे अपनी रिस्क पर स्कूल आते हैं। गांव से करीब 40-50 बच्चे स्कूल आते हैं, जो जुगाड़ की नाव पर सवार होकर स्कूल आते हैं।
वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती
माचक नदी में पानी के तेज बहाव के बीच जुगाड़ की नाव कभी भी खतरनाक हो सकती है। ऐसे में बच्चों की जिंदगी दांव पर लग सकती है। इस समस्या का हल वैसे तो नदी पर पुल निर्माण के बाद होगा, लेकिन प्रशासन यदि तत्कालिक व्यवस्था बनाने की कोशिश करे तो ग्रामीण और बच्चों को इसका फायदा मिल सकता है। ग्रामीणों की मांग है कि नदी पार करने के लिए फिलहाल यदि इंजन वाली नाव की व्यवस्था हो जाए तो उनके लिए सुविधाजनक हो जाएगा। साथ ही बच्चों की जिंदगी दांव पर नहीं लगेगी।
बच्चोंसे नहीं लेते राशि
ग्रामीणों की मदद से जुगाड़ की नाव बनाकर चार लोग करीब 50 बच्चों को माचक नदी से पार कराते हैं, लेकिन खास बात यह है कि बच्चों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है। इन लोगों ने चर्चा करते हुए बताया कि गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए जाना होता है, इसलिए सेवा समझकर किसी से पैसे नहीं लेते। बच्चों के अलावा यदि ग्रामीण इस जुगाड़ की नाव से आना जाना करते तो उन्हें जरूर शुल्क देना होता है। ग्रामीण और बच्चे भी इन लोगों की सेवा की प्रशंसा करते हैं। मगरधा के ग्रामीण भी इन लोगों की एकजुटता और सेवा के बारे में खुलकर तारीफ करते हैं।
जागरूक हैं ग्रामीण
मगरधा से लगा ग्राम रतनपुर आदिवासी ग्राम है। यहां के ग्रामीण भले ही खुद ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है, लेकिन बच्चों को पढ़ाने के लिए सभी सजग हैं। बच्चों की शिक्षा के प्रति उनकी जागरूकता का प्रमाण है कि रास्ता सुगम नहीं होने के बाद भी ग्रामीण बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। चर्चा में भी ग्रामीणों ने बताया कि वर्तमान में पढ़ाई का बहुत महत्व है, ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी होता है। उन्होंने बताया कि यदि परेशानियों से डरकर स्कूल नहीं भेजेंगे तो बच्चे अशिक्षित और अल्प शिक्षित रह जाएंगे।
मिडिल स्कूल की जरूरत
ग्राम रतनपुर में प्राथमिक शाला संचालित है, लेकिन वहां पर माध्यमिक शाला नहीं होने से बच्चों को मगरधा जाना पड़ता है। शिक्षक आत्मा राम उईके ने बताया कि गांव में प्राथमिक शाला में बच्चों के अध्यापन कराया जाता है, लेकिन माध्यमिक शाला नहीं होने से बच्चों को दूसरे गांव जाना पड़ता है। उनका कहना है कि गांव में यदि माध्यमिक शाला खुल जाए तो बच्चों को इसका लाभ मिलेगा। इसके अलावा प्राथमिक शाला से माध्यमिक शाला में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या में इजाफा हो जाएगा।
इनका कहना
यह जानकारी आपके माध्यम से मिल रही है, इसके लिए आज ही अधिकारी को मौके पर भेजकर वस्तुस्थिति का पता लगाया जाएगा। जनहित में जो भी संभव होगा वह प्रयास किए जाएंगे। – रजनीश श्रीवास्तव, कलेक्टर