मुंबई झोपड़ पट्टी विकास बोर्ड ने अप्रैल 2010 में राज्य सरकार को अपनी सर्वे रिपोर्ट सौंपी थी। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में मुंबई के 327 पहाड़ी क्षेत्रों में बसे 22384 झोपड़ों को हटाने की सलाह दी थी, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जा सका है।
सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली को सूचना अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, 1993 से 2013 तक मुंबई में ऐसी पहाड़ियों पर हुए भूस्खलन में अब तक 260 लोग मारे जा चुके हैं। मुंबई के घाटकोपर आजाद नगर एवं साकीनाका खाड़ी नंबर-3 में वर्ष 2000 एवं 2005 में हुए भूस्खलन में क्रमशः 78 एवं 73 लोगों की मौत हुई थी।
इन हादसों के बाद राज्य सरकार ने झोपड़ियों को हटाने और उनमें रहने वालों के सुरक्षित पुनर्वास की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। पत्थरों-मलबे के क्षरण को रोकने के लिए पहाड़ियों पर दीवारें बनवाने में 200 करोड़ रुपये जरूर खर्च कर डाले।
गलगली के अनुसार, उन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण को पत्र लिख कर खतरनाक पहाड़ियों पर बनी झोपड़ियों को हटाने और वहां रहने वालों के पुनर्वास की मांग की है। उन्होंने कहा,इन खतरनाक पहाड़ियों पर रह रहे लोगों को वहां से हटाकर खाली होने वाली जगह वन विभाग को सौंपी जानी चाहिए। ताकि वन विभाग वहां सघन वृक्षारोपण कर बरसात के दिनों में होने वाले भूमि के कटाव को रोक सके।
ज्ञात हो, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने 19 सितंबर 2011 को ही मुंबई को झोपड़ पट्टी मुक्त करने का जिम्मा नगर विकास विभाग को सौंपते हुए एक माह में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए थे, लेकिन 34 माह बाद भी विभाग इस दिशा में ठोस एजेंडा तक पेश नहीं कर सका है।