जिले के तीन अनुसूचित जाति बाहुल्य विकासखंड मरवाही, गौरेला व पेंड्रा में स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने के लिए राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। इसके अलावा आदिवासी इलाकोंमें केंद्र सरकार की कई योजनाएं चल रही हैं। इसमें सबसे प्रमुख मातृत्व मृत्यु दर को कम करने जननी सुरक्षा योजना है। इसके तहत संस्थागत प्रसव शामिल है। इसके अलावा महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार प्रदान किया जाता है।
गर्भवती महिलाओं में खून की कमी
इसके बाद भी गर्भावस्था के दौरान इस क्षेत्र की महिलाओं को खून की कमी हो रही है। खासकर बैगा परिवार की महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं। इन्हें स्वास्थ्य विभाग फोलिक एसिड और आयरन के टेबलेट देने का वादा कर रहा है। इसके बाद भी खून की कमी की समस्या आम है। दूसरी ओर मरवाही, गौरेला व पेंड्रा क्षेत्र में अगर किसी गर्भवती महिला या फिर बीमार व्यक्ति को खून की जरूरत पड़ती है तो उसे सीधे सिम्स या जिला अस्पताल रिफर कर दिया जा रहा है।
जबकि मरवाही से बिलासपुर की दूरी 100 किलोमीटर है। ऐसे में गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों की रास्ते में ही मौत हो जाती है। यह स्थिति ब्लड स्टोरेज व्यवस्था ठप पड़ने के कारण बनी है। इसके लिए भी राज्य शासन ने लाखों रुपए खर्च कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ब्लड रखने के लिए फ्रिजर का इंतजाम किया है। यह उपकरण धूल खाते पड़े हैं। इसके बाद भी जिला प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग की नींद नहीं खुल रही है।
मलेरिया की शिकायत पर 4 साल पहले भेजा गया था खून
गौरेला विकासखंड मलेरिया के मामले में अतिसंवेदनशील क्षेत्र हैं। यहां पर 4 साल पहले बड़ी संख्या में आदिवासी और बैगा लोग मलेरिया से पीड़ित हुए थे। तब सिम्स के ब्लड बैंक से बड़ी मात्रा में रक्त गौरेला ब्लड भेजा गया था। इसके बाद से यहां पर खून नहीं जा रहा है। इसका खामियाजा गरीब आदिवासियों को उठाना पड़ रहा है। जबकि यहां पर हर साल बड़ी संख्या में आदिवासी खून की कमी के साथ-साथ संक्रामक बीमारियों की चपेट में जाते हैं।
2 आदिवासी महिला की गई जान
हाल ही में गौरेला क्षेत्र के दो आदिवासी गर्भवती महिला की मौत हो गई थी। दोनों की स्थिति खून की कमी होने के कारण बिगड़ी थी। इस मामले में लापरवाही बरतने पर एक नर्स को निलंबित कर दिया गया है। वहीं चिकित्सकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए राज्य शासन को मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने पत्र लिखा है।
सिम्स में धूल खा रही ब्लड ट्रांसफ्यूजन वाहन
खून पहुंचाने के लिए राज्य शासन ने लाखों रुपए खर्च कर वाहन खरीदा है। इसका उपयोग ब्लड स्टोरेज सेंटर तक खून पहुंचाने के लिएहोना है। यह वाहन काफी दिनों से सिम्स परिसर में धूल खा रहा है। इसका उपयोग कई बार एम्बुलेंस के तौर पर किया जाता है। जबकि इस वाहन के लिए प्रशिक्षित स्टॉफ आदि की व्यवस्था की गई थी।
साहब पत्नी की जान को है खतरा….कोई तो दिला दे खून
अमरकंटक क्षेत्र के ग्राम चौरादार निवासी आदिवासी महिला पिपरिया बाई 35 वर्ष के शरीर में केवल दो ग्राम हीमोग्लोबिन है। उसे परिजनों ने उपचार के लिए नवीन जिला अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां ए निगेटिव रक्त का इंतजाम नहीं होने के कारण परिजन उसे सिम्स लेकर पहुंचे। यहां भी गरीब आदिवासी महिला का परिवार खून के लिए भटकने को मजबूर है। पीड़ित के पति का कहना है कि उसकी पत्नी की जान खतरे में है। मरवाही, गौरेला, पेंड्रा में रक्त का इंतजाम नहीं होने के कारण वे लोग यहां आए हैं। यहां पर भी उन्हें रक्त के लिए भटकना पड़ रहा है।
नियम-कायदों में उलझा ब्लड बैंक
मरवाही, गौरेला, पेंड्रा विकासखंड की आबादी लाखों में है। यहां पर 100 बिस्तर वाला कोई बड़ा अस्पताल अभी तक नहीं बन सका है। साल भर पहले सीएमओ ने स्वास्थ्य संचालक को क्षेत्र में ब्लड बैंक स्थापना का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन नियमों का हवाला देकर फाइल को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है।
निजी अस्पताल के संचालक कर रहे जान से खिलवाड़ा
ब्लड बैंक की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण मरवाही, गौरेला, पेंड्रा क्षेत्र में स्थित निजी अस्पताल के संचालक अवैध तरीके से बीमार लोगों को रक्त चढ़ा रहे हैं। इसके एवज में मरीजों के परिजनों से मोटी रकम वसूली जाती है। जबकि अनाधिकृत तरीके से मरीजों को रक्त चढ़ाने पर एचआईवी समेत अन्य जानलेवा बीमारी की चपेट में आने की आशंका बनी रहती है।
मरवाही, गौरेला, पेंड्रा में ब्लड स्टोरेज शुरू किया जाएगा। इसके लिए सप्ताह भर के भीतर रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया जाएगा।
डॉ. अमर सिंह ठाकुर, सीएमओ, बिलासपुर
खून की समस्या से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसका निराकरण जिलास्तर पर ही हो सकता है।
डॉ. एआई मिंज, बीएमओ, गौरेला।
खून रखने का फिलहाल इंतजाम नहीं है। जल्द ही इस समस्या का निराकरण किया जाएगा। इसके लिए शिविर भी आयोजित करने की योजना है।
डॉ. एसएन भूरे, एसडीएम, गौरेला