रंगराजन समिति ने 1 अप्रैल 2014 से नई कीमतें लागू करने की सिफारिश की थी, जिस पर केंद्र सरकार को अभी फैसला लेना है। इस बारे में वित्त मंत्रालय ने पेट्रोलियम मंत्रालय सहित सभी संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है।
पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने मंत्रालय को पत्र लिखकर 1 अप्रैल 2014 के बजाय वर्ष 2012 से ही गैस की बढ़ी कीमतें लागू करने की मांग उठाई है।
कंपनी ने वर्ष 2012 के बाद 4.32 डॉलर प्रति यूनिट की दर से गैस बेचने की वजह से भारी घाटे उठाने की बात कही है। इस घाटे के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए रिलायंस ने वर्ष 2012 से ही नई गैस कीमतें लागू करने को कहा है।
गौरतलब है कि जनवरी 2012 से ही गैस कीमतों में बढ़ोतरी का मुद्दा जोर पकड़ने लगा था, लेकिन सरकार ने कीमतें बढ़ाने की अनुमति नहीं दी।
वित्त मंत्रालय ने पेट्रोलियम और ऊर्जा मंत्रालय समेत सभी संबंधित पक्षों के साथ गैस की नई कीमतों पर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि मोदी सरकार किसी नई समिति का गठन करने के बजाय मंत्रालयों के बीच बातचीत से ही इस मामले को हल करेगी।
गैस की बढ़ी कीमतों की मार बिजली और उर्वरक (फर्टिलाइजर) बनाने वाली कंपनियों पर पड़ेगी। इसलिए उनके पक्ष को भी सुना जा रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े लोगों का मानना है कि गैस की नई कीमतें पांच साल के बजाय अल्प अवधि के लिए तय की जा सकती हैं।
उर्वरक मंत्रालय ने यूरिया संयंत्रों को 50 फीसदी ज्यादा प्राकृतिक गैस दिए जाने की मांग की है। इससे आयातित एलएनजी गैस पर यूरिया संयंत्रों की निर्भरता घटेगी और उर्वरक सब्सिडी में 15 हजार करोड़ रुपये की बचत हो सकती है।
उर्वरक सचिव इंद्रजीत पाल ने इस बारे में पेट्रोलियम मंत्रालय को पत्र लिखा है। उन्होंने यूरिया क्षेत्रों को घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस का आवंटन रोजाना 3.15 करोड़ यूनिट से बढ़ाकर 31.5 लाख टन करने की जरूरत जताई है। घरेलू गैस की पर्याप्त आपूर्ति न होने से यूरिया संयंत्रों के लिए तीन गुना महंगी कीमतों पर आयात की गई एलएनजी का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।