नियुक्तियों में गड़बड़ी का आलम यह था कि नियुक्ति का आदेश हासिल करने वाले 494 डॉक्टरों को जब उनके दस्तावेज की जांच के लिए बुलवाया गया तो उनमें से 251 डॉक्टर जांच के लिए नहीं आए। जो जांच के लिए पहुंचे, उनके दस्तावेज में गड़बड़ी पाए जाने पर 53 डॉक्टर अपात्र घोषित किए गए। कुल मिलाकर 494 में से 190 डॉक्टरों की नियुक्ति ही सही पाई गई है।
‘नईदुनिया’ ने इस पूरे मामले की पिछले कई दिनों से लगातार खबरें प्रकाशित की हैं। मामले की जांच कर रही पांच वरिष्ठ डॉक्टरों की टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट आयुक्त चिकित्सा शिक्षा (डीएमई) प्रतापसिंह को सौंप दी है। प्रतापसिंह ने तीन दिन पहले नईदुनिया से इसी मामले में कहा था कि डॉक्टरों की नियुक्ति में कोई गड़बड़ी नहीं है।
अब माना हुई लापरवाही
आयुक्त चिकित्सा शिक्षा प्रतापसिंह ने शनिवार को नईदुनिया से चर्चा के दौरान मान लिया है कि नियुक्तियों में लापरवाही हुई है। उन्होंने जानकारी दी है कि इस मामले में जिम्मेदार डॉ. उरांव के कारण बताओ नोटिस जारी की गई है। प्रतापसिंह ने यह भी बताया कि 494 डॉक्टरों की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी होने के कारण केवल 190 की नियुक्ति ही हो पाई है। बाकी बचे डॉक्टरों के पदों के लिए फिर से नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।
रिपोर्ट भेजी गई शासन को
नियुक्तियों में गड़बड़ी के मामले की जांच के बाद तैयार की गई रिपोर्ट सरकार को भेज दी गई है। बताया गया है कि रिपोर्ट के आधार पर 53 अपात्र डॉक्टरों के नियुक्ति पत्र निरस्त किए जाएंगे। इसी तरह नियुक्ति आदेश हासिल करने के बाद दस्तावेज का सत्यापन करवाने के लिए नहीं आने वाले 251 डॉक्टरों के नियुक्ति आदेश रद्द होंगे।
नियुक्ति आदेश के बाद 251 डॉक्टर क्यों नहीं आए दस्तावेज सत्यापन के लिए
स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सा अधिकारी पद राजपत्रित (द्वितीय श्रेणी ) का नियुक्ति पत्र हासिल करने के बाद 251 चिकित्सा अधिकारी अपने दस्तावेजों के सत्यापन के लिए क्यों नहीं आए? यह सवाल इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी और घोटाले की ओर संकेत कर रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार इस बात से अब इंकार किया जाना मुश्किल है कि इन 251 नियुक्तियों में भारी घोटाला या गड़बड़ी है।
अगर ऐसा नहीं होता तो नियुक्ति आदेश पाने के बाद भी ये डॉक्टर दस्तावेज सत्यापन के लिए क्यों नहीं आते? उल्लेखनीय है कि सभी 494 डॉक्टरों की नियुक्ति के बाद इनकी पदस्थापना के आदेश भी जारी कर दिए गए थे। लेकिन जब नियुक्ति में घोटाले का पता लगा तो सभी सीएमओ को निर्देश भेजे गए कि नव नियुक्त डॉक्टरों को ज्वॉइन न करने दिया जाए।
पोस्टिंग में भी गड़बड़ी
जिन डॉक्टरों की नियुक्ति की गई उनकी पदस्थापना आदेश में भी गड़बड़ी का पता लगा। बताया गया है कि बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव जैसे शहरी इलाकोंके अस्पतालों में जहां डॉक्टरों की जरूरत नहीं थी, वहां भी इन डॉक्टरों की पदस्थापना के आदेश जारी कर दिए गए। इसके उलट बस्तर के दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और सरगुजा के दूरस्थ क्षेत्रों में जहां डॉक्टर ही नहीं है, वहां इन नवनियुक्तों को नहीं भेजा गया था। यह भी पता चला है कि बिलासपुर में 10 डॉक्टरों की नियुक्ति अतिशेष के रूप में की गई।
लीपापोती की कोशिश होती रही
इस मामले का खुलासा होने से पहले विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारियों को गड़बड़ी और घोटाले की जानकारी थी। सूत्रों के अनुसार इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बड़े अधिकारियों ने ही मामले में लीपापोती शुरू कर रखी थी। जांच शुरू होने के बाद भी एक वरिष्ठ अधिकारी यह दावा करते रहे कि नियुक्तियों में कोई गड़बड़ी नहीं है, लेकिन जांच-पड़ताल के बाद अब मामला पूरी तरह साफ हो चुका है कि इस नियुक्ति प्रक्रिया में विभिन्न स्तरों पर गड़बड़ियां हुई हैं।
डॉक्टर नियुक्ति प्रकरण को लेकर स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप है। इसे लेकर डॉक्टर और अधिकारी गुटों में बंट गए हैं। लीपापोती करने में जुटे अधिकारी और डॉक्टरों का गुट प्रक्रिया को पाक साफ बताने की कोशिशें कर रहा है, जबकि दूसरा गुट सिर्फ यही नहीं पिछले तीन साल में हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी-घोटाले से लेकर आरएमए की तबादला पोस्टिंग और संविदा नियुक्ति वालों के ट्रांसफर में हुए कथित घोटाले की बात कह रहा है।