सुमेधा पुराणिक चौरसिया, इंदौर। आदिवासी इलाकों के किसानों के लिए फूलों की खेती मुनाफे का धंधा साबित हुई। जो किसान गेहूं-चना-सोयाबीन के अलावा कुछ दूसरा बोने की सोच ही नहीं पाए थे। वे अब नई तकनीक से जुड़कर फूलों की खेती कर रहे हैं। कम खर्च में बडा मुनाफा होने से यह खेती किसानों को कर्ज से उबारने में मिल का पत्थर साबित हुई। चोरल के आसपास के करीब पांच गांवों में ऑफ सीजन में भी गेंदा के फूल खिल रहे हैं और किसानों को मंडी में मुंह मांगे दाम मिल रहे हैं।
चोरल के आसपास के इलाकों के किसान अब परंपरागत खेती से अलग आधुनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। जिन किसानों ने गेहूं-सोयाबीन की फसल के अलावा कभी कुछ सोचा ही नहीं था वे अब फूलों की खेती कर रहे हैं। इसमें किसानों को अच्छा खासा मुनाफा भी हो रहा है। दुर्गम इलाकों में बसे केकरिया डाबरी, गुंजारा, रतवी, भाटियाखेड़ा गांव से निकलने के दौरान खेतों में लगे नेट शेड हाउस देखे जा सकते हैं। पहले तो ऐसे पिछड़े किसानों के खेत में नेट हाउस देखकर लोग आश्चर्य मे पड़ रहे हैं।
तेज धूप पड़े या सामान्य बारिश हो, लेकिन अब इन किसानों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इन्होंने एकिकृत जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम के तहत नई तकनीक और नए तरीके से खेती शुरू की। किसानों को बीज बैंक से मुफ्त में बीज मिल गए और नेटशेड भी लग गए। जब इनके खेतों में गेंदे के फूल लहलहाने लगे तो इनकी कीमत भी अच्छी मिली। पहली बार किसान गांव छोड़कर शहर की सीमा में अपनी फसल बेचने निकले। हर एक किसान को करीब 50 से 60 हजार रुपए मुनाफा हुआ।
तेज धूप या कम बारिश से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
केकरिया डाबरी के अनारसिंह लोदिया और रतवी के बाबूलाल ने बताया कि हमारा पूरा जीवन गेहूं-सोयाबीन की खेती में निकल गया। उसमें भी मौसम की मार से कभी अच्छी फसल होती तो कभी पूरी खराब हो जाती। अब फूलों की खेती से गरीब किसानों को फायदा हो रहा है। सालों से कर्ज पर ब्याज चढ़ रहा था, लेकिन गेहूं-सोयाबीन से कमाई नहीं हो पा रही थी। अब फूलों की खेती से कमाई हुई और हम धीरे-धीरे कर्ज भी चुका रहे हैं। यही कहना शिव कुमार का भी है।
जरूरत के मुताबिक धूप-पानी
खेती की नई तकनीक में पौधों को उतनी ही धूप और पानी मिलता है जितनी जरूरत है। कम खर्च में ज्यादा उत्पादन होने से किसानों को ज्यादा फायदा है। नेट शेड हाउस में पौधे तैयार होने के बाद किसान खेतों में लगाते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा है कि ऑफ सीजन में भी खेती होती है। वैसे इसकी बोवनी बारिश में होती है। करीब 20-25 किसानों को प्रशिक्षित कर एक प्रयोग किया था, जो सफल रहा।
– डॉ.दिनेश पालीवाल, कृषि विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र, कस्तुरबाग्राम