इस आविष्कार का महत्वपूर्ण योगदान इस रूप में है कि इससे किसानों की लागत खेती में कम हो जाती है, नहीं तो इतनी बड़ी मात्र में मिट्टी को हटाने में अच्छी संख्या में श्रमिकों की तो जरूरत पड़ती ही दूसरी ओर पारिश्रमिक पर भी अच्छा-खासा खर्च होता, साथ ही कृषि कार्य में अनावश्यक विलंब होता. चूंकि यह मशीन घंटों में मिट्टी हटाने के काम को आसान कर देती है, इसलिए किसान जल्दी व समय पर फसलों की बोआई अपने खेत में कर सकता है.
रेशम सिंह की राजस्थान के हनुमानगढ़ में उपकरण व मशीन का वर्कशॉप है. राजस्थान में वे अपने पिता के निधन के बाद कारोबार के लिहाज से जा बसे. दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आइटीआइ में प्रवेश लिया. पर, आइटीआइ में ज्यादा दिनों तक नहीं रह सके और उन्हें अपना संस्थान छोड़ना पड़ा. उन्होंने कुछ दिनों तक राजमिस्त्री का काम किया और पंजाबी में कविता लिखने की भी कोशिश की. उसके बाद वे मशीन व औजारों के व्यापार में प्रवेश कर गये. उसके परिवार में उनकी पत्नी व दो बेटे और एक बेटी हैं. उन्होंने शुरुआत में एक कटर और बेंडिंग मशीन भी बनायी थी. इसके लिए उन्हें स्थानीय जिला कलेक्टर ने वर्ष 2006 में गणतंत्र दिवस के मौके पर सम्मानित भी किया था.
वहीं, इस आविष्कार में उनके सहयोगी रहे कुलदीप सिंह का भी जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. पर, वे मशीन व फेब्रिकेशन का काम करते हुए बड़े हुए. वे भी मात्र दसवीं की कक्षा तक पढ़ सके, पर उन्हें तकनीक और उसके पीछे के विज्ञान की गहरी समझ थी. बचपन से ही उनकी पढ़ाई में कभी रुचि नहीं रही, वहीं मशीन उन्हें हमेशा आकर्षित करती थी. 1980 में उनके परिवारको एक हारवेस्टर कंबाइन की जरूरत हुई, पर अधिक महंगी होने के कारण उनका परिवार उसे खरीद नहीं सका. ऐसे में उन्होंने इस चुनौती का सामना करते हुए हारवेस्टर कंबाइन मशीन विकसित की. उनके परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटे व एक बेटी ही हैं.
परेशानियों से पड़ी आविष्कार की नींव
मॉनसून के दौरान हनुमानगढ़ में खेत में बहुत सारी मिट्टी जमा हो जाती है. इससे खेतों का स्तर ऊंचा हो जाता है और नहर का पानी खेत में लाना मुश्किल हो जाता है. इसलिए खेत का स्तर नहर के बराबर या उससे नीचे बनाये रखने के लिए मिट्टी खुरचने की जरूरत पड़ती है. यह काम अक्सर जेसीबी मशीन व ट्रैक्टर में जुड़ी मिट्टी हटाने की मशीन से किया जाता है. यह काम कड़ी मेहनत वाला होने के साथ महंगा भी होता था. इलाके में कुलदीप सिंह की पहचान एक मशीन विशेषज्ञ के रूप में थी. ऐसे में उनके पास एक किसान इस समस्या को लेकर आया और कोई हल तलाशने की अपील उनसे की. कुलदीप सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए उस किसान को आश्वस्त किया कि कुछ ही दिनों में वे इस तरह की मशीन बनाने का वादा किया.
कुलदीप की भी ऐसी ही परेशानी थी
दरअसल इस आविष्कार में कुलदीप के जी-जान से जुड़ने का एक प्रमुख कारण यह भी था कि उनकी भी 40 बीघा जमीन उबड़-खाबड़ थी. इस कारण वे उस पर खेती नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने ट्रैक्टर से उसे समतल करने की कोशिश की थी, लेकिन उसका कोई अच्छा परिणाम नहीं आया. मजदूरों से यह काम कराना उनके लिए काफी महंगा पड़ रहा था. इस परिस्थिति में उन्होंने विचार किया कि क्यों न एक ऐसी मशीन तैयार की जाये, जो इस काम को आसान बना दे. हालांकि उन्होंने इस मशीन पर उन्होंने 2005 में ही काम शुरू कर दिया था, लेकिन सुधार के बाद 2009 में वह मशीन तैयार हो गयी.
रेशम सिंह की जमीन समतल करने और मिट्टी लादने की मशीन पीटीओ के जरिये चलने वाली मशीन है. यह मशीन अपने ब्लेडों के जरिये जमीन से मिट्टी व रेत खुरचती है और फिर उसे कंटेनर के जरिये ट्रैक्टर की ट्रॉली में भर देती है. 11 फीट गुणा छह फीट गुणा 2.25 फीट साइज का ट्रेलर मात्र डेढ़ मिनट में भर जाती है. अगर मिट्टी ज्यादा कड़ी नहीं हो तो यह काम महज एक मिनट में हो जाता है.
वहीं, कुलदीप सिंह की जमीन समतल करने व मिट्टी लादने वाली मशीन भी ट्रैक्टर पीटीओ से चलती है. यह दूसरी मशीन की ही तरह काम करती है और एक बार में तीन इंच तक मिट्टी खुरच सकती है. 11 फीट गुणा छह फीट गुणा 2.25 फीट साइज की ट्रैक्टर ट्रॉली को यह मशीन एक मिनट में भर देती है. जमीन सख्त नहीं रहने पर इस काम में और भी कम समय लगता है. पांच से सात लीटर डीजल एक घंटे में जलता है. एक बार में तीन फुट की चौड़ाई से यह मशीन मिट्टी उठा सकती है और आठ फुट की ऊंचाई से रेत को गिरा सकती है. एक दिन मेंइससेपांच एकड़ मशीन को समतल बनाया जा सकता है.
रेशम सिंह हनुमानगढ़ और आसपास के क्षेत्र में अबतक 40 मशीन बेच चुके हैं, जबकि कुलदीप सिंह ने पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और महाराष्ट्र में अबतक 200 मशीनें बेची है. इन मशीनों से किसानों को काफी मदद मिली है.
एनआइएफ से दोनों को मिला सम्मान
रेशम सिंह और कुलदीप सिंह को उनके आविष्कार के लिए वर्ष 2013 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनएफआइ) की ओर से पुरस्कृत किया गया.
खेती के क्षेत्र में इस मशीन से आ सकता बड़ा बदलाव
कुलदीप सिंह के द्वारा बनायी गयी मशीनों का अगर प्रयोग बड़े स्तर पर हो तो यह खेती के लिए काफी लाभदायक होगी. खासकर वैसी भूमि के लिए जो जलस्नेतों से काफी ऊपर हैं या उबड़-खाबड़. खुद कुलदीप ने अपनी मशीन का उपयोग कर अपनी खेती को बेहतर बनाया. हालांकि अभी इस मशीन का उपयोग सीमित क्षेत्र में हो सका है. अगर इन मशीनों के प्रचार-प्रसार के लिए सरकार के स्तर पर प्रयास होगा तो इसका क्रय देश के दूसरे हिस्सों में भी किसान करेंगे. झारखंड जैसे उबड़-खाबड़ भूभाग वाले राज्य के लिए यह मशीन काफी उपयोगी. उसी तरह बिहार के लिए भी यह महत्वपूर्ण हैं, जहां भूमि के जलस्नेत से ऊपर होने से दिक्कतें सामने आ सकती हैं. हालांकि नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के द्वारा इन दोनों किसानों का सम्मान किये जाने से यह उम्मीद बढ़ी है कि इसको बड़े स्तर पर प्रोत्साहन मिलेगा.