अंबागढ़ चौकी. ग्राम
मरकाटोला। धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र। राजनांदगांव जिले से करीब 100 किमी
दूर। इस गांव में शिक्षा की नई इबादत लिखी जा रही है। वह भी सरकारी स्कूल
में। प्राइमरी स्कूल है यहां। दो शिक्षकों ने प्रयास किया। गांव वालों का
साथ मिला। स्कूल में पूरे साल पढ़ाई होने लगी। गर्मी और दशहरा-दिवाली की
छुट्टियां तो होती हैं, पर इस दिन भी क्लास लगती है। शिक्षक अपने वेतन से
हिंदी और अंग्रेजी का रोज अखबार खरीदकर लाते हैं। बेहद जरूरी हुआ तो कोई एक
शिक्षक यदा-कदा ही छुट्टी लेता है। और नतीजे देखिए। पहली कक्षा का बच्चा
अंग्रेजी के अल्फाबेट्स और दूसरी का पूरे शब्द बोल लेता है। तीसरी का छात्र
कक्षा चौथी की पुस्तकें पढ़ रहा है। इतना ही नहीं, ये नन्हे बच्चे अभी से
ही इंजीनियर-डॉक्टर बनने के बड़े सपने तक देखने लगे हैं।
मरकाटोला। धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र। राजनांदगांव जिले से करीब 100 किमी
दूर। इस गांव में शिक्षा की नई इबादत लिखी जा रही है। वह भी सरकारी स्कूल
में। प्राइमरी स्कूल है यहां। दो शिक्षकों ने प्रयास किया। गांव वालों का
साथ मिला। स्कूल में पूरे साल पढ़ाई होने लगी। गर्मी और दशहरा-दिवाली की
छुट्टियां तो होती हैं, पर इस दिन भी क्लास लगती है। शिक्षक अपने वेतन से
हिंदी और अंग्रेजी का रोज अखबार खरीदकर लाते हैं। बेहद जरूरी हुआ तो कोई एक
शिक्षक यदा-कदा ही छुट्टी लेता है। और नतीजे देखिए। पहली कक्षा का बच्चा
अंग्रेजी के अल्फाबेट्स और दूसरी का पूरे शब्द बोल लेता है। तीसरी का छात्र
कक्षा चौथी की पुस्तकें पढ़ रहा है। इतना ही नहीं, ये नन्हे बच्चे अभी से
ही इंजीनियर-डॉक्टर बनने के बड़े सपने तक देखने लगे हैं।
मोहला से 10 किमी दूर इस स्कूल में सत्र की शुरुआत में ही सालभर की
प्लानिंग कर ली जाती है। शिक्षक रमेश्वर साहू व मो. सादिक अहमद बताते हैं
कि शासन के शैक्षणिक कैलेंडर के साथ वे अलग से सालाना शेडयूल तय करते हैं।
लक्ष्य तय होने से अध्यापन में सुविधा होती है। इसी का नतीजा है कि दूसरी
की कामेश्वरी ने अंग्रेजी के अक्षर ज्ञान से अखबार की पढ़ाई सीख ली। तीसरी
के गुलशन कामरो और नूतन उसेंडी की इस भाषा में पकड़ मजबूत हुई। गुलशन कहता
है वह इंजीनियर बनेगा। इसी तरह कोई डॉक्टर बनना चाहता है। पहली से पांचवीं
तक के हर बच्चे ने उद्देश्य बना लिया। यह सिलसिला पिछले तीन वर्षों से
लगातार जारी है। पांच सौ की आबादी वाले इस गांव के स्कूल की कुल दर्ज
संख्या 45 है। वहां शिक्षकों के साथ ग्रामीणों ने भी उसे आदर्श स्कूल बनाने
की ठान ली है।
सराहनीय है प्रयास
मरकाटोला के प्राइमरी स्कूल में गर्मी की छुट्टियों में भी नियमित कक्षाएं लगती हैं। शिक्षकों का प्रयास सराहनीय है।
– एफ.आर सलाम, बीईओ
कैसे बदली तस्वीर
शिक्षक रमेश्वर और मो. सादिक ने छात्रों के स्किल डेवलपमेंट की ओर ध्यान
दिया। बच्चों के लिए पढ़ाई बोझ नहीं बल्कि आकर्षण हो, इसके लिए जतन किए।
छुट्टियों में उन्हें स्कूल बुलाया। भाषाई ज्ञान के लिए अखबार को माध्यम
बनाया। खबरों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया। हिंदी और अंग्रेजी दोनों
अखबारों के जरिए उन्हें पढऩा सिखाया। इससे छात्रों को नॉलेज भी मिला और
भाषा में पकड़ भी बनती चली गई। वहीं दशहरा-दिवाली या अन्य अवकाश के समय
वहां कोचिंग क्लासेस लगाई गई। भारतीय परंपराओं और संस्कृति की जानकारी देने
के साथ ही उन्हें कोर्स का रिविजन भी करवाते रहे।
व्यायाम से होती है शुरु आत: स्कूल में सुबह 6 बजे योग-व्यायाम की
कक्षाएं लगती हैं। इस तरह मानसिक जरूरतों के साथ शारीरिक स्वास्थ्य का भी
पूरा ध्यान रखा जाता है।