नयी दिल्ली: पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा शुरु कराया गया अध्ययन तीन
सालों के बाद भी बेनतीजा निकला. सरकार अबतक काले धन को लेकर कोई विशेष कदम
नहीं उठा पायी है. पिछली सरकार ने 21 मार्च 2011 को यह अध्ययन शुरु कराया
था और इसके लिए 18 महीने का समय दिया था जो 21 सितबर 2012 को पूरा हो गया
था. यह अध्ययन नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक फाइनांस एंड पालिसी
(एनआईपीएफपी), नैशनल काउंसिल आफ अप्लायड इकॉनामिक रीसर्च (एनसीएईआर) ओर
नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फिनांशल मैनेजमेंट (एनआईएफएम), हैदराबाद को सौंपा गया
है.
इस शोध से क्या निष्कर्ष निकला इसकी जानकारी के लिए सूचना के अधिकार के
तहत मांगी गई जानकारी में वित्त मंत्रालय ने कहा ‘‘अभी यह अध्ययन पूरा
नहीं हुआ है.’’ इसमें कहा गया कि फिलहाल इससे अधिक जानकारी नहीं दी जा सकती
क्योंकि इस सूचना को अधिनियम की धारा 8 (1) (सी) से छूट प्राप्त है जिसे
अभी संसद में पेश नहीं किय गया है.उक्त धारा के तहत उन सूचनाओं का खुला
सरकने पर पाबंदी है जिससे संसद या राज्य विधानसभा के विशेषाधिकार का हनन
होता हो. सरकार काले धन पर ध्यान केंद्रित कर रही है और सरकार इससे निपटने
की कोशिश कर रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को काले धन पर विशेष जांच दल
(एसआईटी) के गठन का आदेश दिया था. इस 11 सदस्यीय एसआईटी के अध्यक्ष उच्चतम
न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एम बी शाह हैं. संसद के संयुक्त अधिवेशन को
संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने हाल में कहा कि सरकार
भ्रष्टाचार मिटाने और देश की काले धन की समस्या खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध
है. अब पूरानी सरकार के मुकाबले नयी सरकार काले धन के अध्ययन पर कितनी
तेजी लाती है और इसके लिए और क्या जरूरी कदम उठाती है यह वक्त के साथ साफ
हो पायेगा