श्रवण शर्मा/बालाघाट। पांजरा में पीने के पानी के लिए पसीने बहाना रोजमर्रा की मजबूरी है। खैरलांजी तहसील के इस गांव में महिलाओं को तपती धूप में डेढ किमी का फासला तय कर पानी मुहैया होता है। यहां रोजाना पैरों व हाथों की वर्जिश का सिलसिला शुरू होता है। दरअसल, सूखी चनई नदी में एक-एक स्थान पर दर्जनभर महिलाएं पानी के लिए गड्ढा खोदकर झील बनाती है।
फिर घंटों पसीना बहाकर निकले पानी को कतार लगाकर बर्तनों में सहेजा जाता है। जिला मुख्यालय से करीब 90 किमी दूर पांजरा गांव में गर्मी के चलते मौजूदा जलस्रोत सूख चुके हैं। आजादी के बाद से इस गांव में पीने के पानी के लिए पुख्ता इंतजाम नहीं हुए हैं। गर्मी ही नहीं बल्कि बारिश व ठंड में भी लोगों को पीने के पानी के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती हैं। गांव के हैंडपंप खारा पानी उगल रहे हैं, कुओं में पानी नहीं है।
ये नहीं मानते जलसंकट
ग्रामीण भले ही बूंदबूंद पानी को तरस रही हों,लेकिन प्रशासन नहीं मानता कि जिले में कहीं जलसंकट है। यही वजह है कि जिले में प्रशासन ने ग्रीष्मकालीन जलसंकट से निबटने वैकल्पिक इंतजाम नहीं किए। इसी पेंच में खैरलांजी का पांजरा गांव जल संकट से वर्षों से जूझ रहा है।
रोज खोदते हैं गड्ढा
‘यहां पीने के पानी की समस्या है। यहां के जलस्रोत गर्मी में सूख जाते हैं। हैंडपंपों से खारा पानी निकलता है। जिसके चलते लोग नदी से पानी लाते हैं। गर्मी में नदी का पानी भी सूख जाता है। ग्रामीणों को रोज पानी के लिए नदी में गड्ढा खोदना पड़ता है।’ -खिलेश्वरी परमानंद बिसेन, सरपंच पांजरा
बन रही योजना
पांजरा में नल जल योजना पर काम हो रहा है। जल्द ही जलसंकट से निजात मिल जाएगा। -एच के वैद्य, कार्यपालन यंत्री पीएचई