रांची : पूरे राज्य में गत 15 दिनों से दूध की कमी बनी हुई है. इस कमी
से निबटना मुश्किल है. सुधा की रांची डेयरी से शहर व आसपास के बूथों पर दूध
की आपूर्ति में लगातार कटौती की जा रही है. टाटीसिलवे व अन्य इलाके में
तीन दिन बाद शनिवार की रात दूध पहुंचा, जो मांग से काफी कम था. गव्य
निदेशालय सूत्रों के अनुसार शादी-ब्याह के इस मौसम में बिहार में दूध की
मांग में आयी तेजी से ऐसा हो रहा है.
गरमी में दूध का उत्पादन ऐसे भी कम हो जाता है. इस कारण से बिहार स्टेट
मिल्क कोऑपरेटिव फेडरेशन लि. (कंफेड) ने झारखंड स्थित अपनी डेयरियों
(रांची, जमशेदपुर व बोकारो) को करीब 60 फीसदी आपूर्ति कम कर दी है. इन्हीं
तीन डेयरियों से राज्य के शेष जिलों को भी दुग्ध आपूर्ति होती है. अभी दूध
की कमी के मद्देनजर मुख्य शहरों को ही आपूर्ति हो रही है. यह स्थिति पूरे
जून माह तक रहने की आशंका है.
दुधारू पशु व दूध उत्पादन
बेसिक एनिमल हसबेंडरी स्टैटिसटिक्स-06 के अनुसार, झारखंड में गायों की
कुल संख्या 76.59 लाख व भैंस की संख्या 13.43 लाख है. इतनी बड़ी संख्या के
बावजूद झारखंड में दूध की कमी है. झारखंड को हर रोज 76 लाख लीटर दूध चाहिए.
जबकि उत्पादन होता है सिर्फ 37 लाख लीटर. अकेले रांची जिले में रोज 12 लाख
लीटर दूध चाहिए. वहीं उपलब्धता सिर्फ आठ लाख लीटर है (नित्यानंद शुक्ला की
रिपोर्ट-2008). शहर के विभिन्न इलाके के कुल निबंधित 1244 खटालों में
10231 मवेशी हैं, जो रोजाना करीब 57 हजार लीटर दूध का उत्पादन करते हैं.
रांची का ओरमांझी प्रखंड दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है. यहां से हर रोज करीब
छह हजार लीटर दूध बाजार में आता है.
उत्पादन बढ़ाने के उपाय
दूध की कमी की मुख्य वजह दुधारू पशुओं की कम उत्पादकता है. इससे निबटने
के लिए गव्य निदेशालय दो काम कर रहा है. एक उन्नत नस्ल के दुधारू मवेशियों
का वितरण व दूसरा नस्ल सुधार कार्यक्रम. मवेशियों में दूध की उत्पादकता
बढ़ाने के लिए पुणो की संस्था बैफ के साथ समझौता (छह जून 05 को) कर कृत्रिम
गर्भाधान के जरिये नस्ल सुधार की योजना चलायी जा रही है. यह काम राज्य भर
में स्थापित 510 गव्य विकास केंद्रों के माध्यम से हो रहा है.
कब होगा असर
बैफ के माध्यम से अब तक करीब 1.5 लाख गाय की बाछी व करीब 12 हजार भैंस
के बच्चे का जन्म हुआ है. इनमें से कितने ने दूध देना शुरू किया, इसकी
रिपोर्ट निदेशालय में नहीं है. शेष के बड़े होने व गर्भ धारण करने के बाद
दूध देने तक दो से तीन साल तक का समय लग सकता है. पर दूध की जरूरत व
उपलब्धता पर इसका असर बाद में पता चलेगा. निदेशालय सूत्रों के अनुसार राज्य
के जनजातीय समूहों सहित अन्य स्थानीय लोगों में दूध पीने व इसके उत्पादन
का रुझान कम है. इससे भी डेयरी को बढ़ावा नहीं मिल रहा.