विदेशी बीज मिलाकर रिसर्च
इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक निखिल सिंह ने बताया कि विदेशों से गेहूं और मक्का की सीड लाकर यहां टेस्ट की जाती है। सीड को लोकल सीड के साथ मिलाने के बाद एक निश्चित एरिया में लगाया जाता है। इसे हफ्ते में तीन से चार बार देखकर इसकी प्रोग्रेस रिपोर्ट तैयार करते हैं, लेकिन कई बार रिसर्च के बीच में ही आस-पास के गांव के जानवर इन्हें खा गए, जिससे बीच में ही प्रोग्राम रुक गया।
सीड लाने में लाखों खर्च
दरअसल विदेशों से हाइब्रिड सीड लाने में ही लाखों रुपये का खर्च आता है। इतनी ज्यादा लागत होने के बाद कई रिसर्च जानवरों के कारण खराब हो चुकी हैं। डॉ.निखिल बताते हैं कि इसकी शिकायत कृषि विभाग के आला अधिकारियों से भी की जा चुकी है। गांव के सरपंचों को भी इस बारे में बताया गया। उन्होंने मुनादी पिटवाकर गांव वालों की इसकी जानकारी भी दी, लेकिन कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
अब लग रही फेंसिंग
इंस्टीट्यूट अब जाकर रिसर्च एरिया में फेंसिंग करा रहा है, ताकि इस नुकसान को रोका जा सके। जिससे आस-पास के किसानों को परेशानी हो रही है। किसान वीरू यादव ने बताया कि मेड़ के किनारे से फेंसिंग लगाई जा रही है। जिससे निकलने में दिक्कत होगी। हालांकि इस बारे में हमने इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों से कहा है कि वे निकलने की जगह छोड़कर फेंसिंग लगाए।
खास
– साउथ एशिया, मैक्सिको,चायना और वियतनाम से सीड लाई जाती है।
– इसे वहां से यहां लाने में ही लाखों रुपये का आता है खर्च।
– खेत में लगी रिसर्च के पौधों को खा जाते हैं जानवर।
– अधिकारियों से की शिकायत, पर नहीं मिली राहत।
– फेंसिंग लगाकर कम कर रहे नुकसान।