पिछले तीन महीने में भारत ने बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। यह सरकार विहीन
यथार्थ से विपक्ष विहीन यथार्थ की स्थिति में आ गई है। निष्क्रियता और
अयोग्यता का एक चक्र पूरा हो चुका है। ऐसे में, जनादेश को इस तरह भी
अभिव्यक्त किया जा सकता है-अबकि बार केवल सरकार, कोई विपक्ष नहीं! सांसद
आपस में मजाक करते देखे जा रहे हैं कि एनडीए के सभी सदस्यों के बैठने के
लिए एयरबस की जरूरत पड़ेगी, जबकि कांग्रेस के सांसद तो राज्य परिवहन निगम
के बस में ही आ जाएंगे।
इससे पहले किसी क्षेत्रीय नेता ने इतने कम
समय में खुद को राष्ट्रीय राजनीति में इतनी मजबूती से सुप्रतिष्ठित नहीं
किया था। यह जनादेश नरेंद्र मोदी के लिए है-किसी को इस बारे में तनिक भी
संदेह नहीं रहना चाहिए। लेकिन यह जीत भाजपा के लिए बड़ी चुनौती भी है। यह
जनादेश उससे बड़ी जिम्मेदारी निभाने की मांग करता है और सरकार के लिए कोई
बहाना नहीं छोड़ता। अब मजबूरी, सर्वानुमति, गठबंधन या समझौता जैसे शब्द
नहीं चलेंगे। नरेंद्र मोदी ने निराशा का माहौल खत्म करते हुए उम्मीद का
संचार किया है। सरकार को अब इस उम्मीद को वास्तविकता में बदलना होगा। एक
देश के रूप में भारत को यदि पुनर्जीवित करना है, तो सरकार को इन मुद्दों पर
ध्यान केंद्रित करना ही होगा-
मुद्रास्फीति: आय और खर्च के
बीच की इस खाई ने ही यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनाया था। खाद्य
मुद्रास्फीति उत्पादन, आपूर्ति और वितरण के बीच की गड़बड़ी का नतीजा है।
देश को नया अमूल, अगला वर्गीज कुरियन, और एक ऐसा आदर्श चाहिए, जो उपलब्धता
और मूल्य वहनीयता, दोनों में संतुलन साध सके, जो राज्य सरकारों के साथ
तालमेल बिठाते हुए मांग पूरी करने का एक तंत्र बना सके। इस संदर्भ में हर
राज्य मुद्रास्फीति तालिका जारी कर अच्छी शुरुआत कर सकता है, जिससे पता
चलेगा कि कुछ खास वस्तुओं की अलग-अलग राज्य में कीमत क्या है। इससे हर
राज्य कृषि उत्पादन, विपणन, वितरण के क्षेत्र में सुधार शुरू करते हुए
जमाखोरों पर लगाम लगा सकता है।
राजकोषीय घाटा: यूपीए सरकार
रोज 200 करोड़ रुपये उधार ले रही थी। अभी सरकार प्रति घंटे 70 करोड़ रुपये
से भी ज्यादा कर्ज लेती है। इस उधारी का बड़ा हिस्सा कर्ज और ब्याज चुकाने
में चला जाता है। ऐसे में सार्वजनिक ढांचे में निवेश करने के लिए उसके पास
मामूली रकम ही बचती है। इस परिदृश्य को रातोंरात तो नहीं बदला जा सकता, पर
कर्ज का एक बड़ा हिस्सा एकमुश्त चुकाया जा सकता है। खनिज, गैस, कोयला और
स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए टिकाऊ ढांचा बनाकर खनन, मैन्यूफैक्चरिंग और
सेवा क्षेत्र को पुनर्जीवित किया जा सकता है। एक नए कर ढांचे के जरिये इसकी
मौजूदा असमानता दूर की सकती है। ऐसे में उद्योगों को दी जाने वाली कर छूट
और संपत्ति टैक्स की कम वसूली की समीक्षा भी होगी।
विनिवेश:
नरेंद्र मोदी निजीकरण के समर्थक नहीं हैं, पर उनकी सरकार को विनिवेश के
रास्ते पर चलना पड़ेगा। वह सार्वजनिक इकाइयों, बैंकों और एलआईसी में सरकारी
हिस्सेदारी घटाकर 26 फीसदी तक ला सकते हैं। इतना ही नहीं, शेयर बाजार की
तेजी को वह विनिवेश कास्वर्णिम अवसर बना सकते हैं। दीर्घावधि कर्ज और
इक्विटी बाजार में वह देशवासियों को भागीदार बना सकते हैं। इससे कंपनियों
का स्वामित्व सरकार के बजाय सीधे लोगों के हाथों में आ जाएगा और विकास के
लिए संसाधन जुटाने में आसानी होगी।
सब्सिडी: सरकारी खर्च का
यह दूसरा सबसे बड़ा मद है, जिसे लगातार जारी नहीं रखा जा सकता। गरीबों को
मदद मिलनी चाहिए। लेकिन गरीबों की सही पहचान जरूरी है कि कौन गरीब है,
कितने गरीब हैं और उन्हें सब्सिडी मिल रही है या नहीं। वित्तीय समावेशन को
सुधारने और डाइरेक्ट कैश ट्रांसफर को विस्तार देने के लिए तकनीक का प्रयोग
अनिवार्य है।
कृषि: अब खाद्यान्न उत्पादन को प्रति एकड़ के
बजाय प्रति लीटर (पानी) में देखना होगा, पौधरोपण की प्रक्रिया ऐसी हो,
जिससे उत्पादन वृद्धि, उपलब्धता और प्रतिस्पर्धा में टिकने की गारंटी हो।
ज्ञान, तकनीकी इस्तेमाल और संसाधनों के जरिये उन राज्यों की तस्वीर बदली जा
सकती है, जो कृषि उत्पादन में पिछड़े हैं।
नतीजा दिलाने वाले बजट:
भारतीय बड़ी योजनाओं और बड़ी विफलताओं में जीने वाले लोग हैं। यह बंद होना
चाहिए। बजट से एक महीना पहले हर मंत्रालय को एक रिपोर्ट कार्ड जारी करना
होगा-कितना खर्च किया गया और क्या हासिल हुआ।
निवेश को नवजीवन:
अपने चुनाव अभियानों में मोदी ने राज्यों के साथ सहयोग करने की और स्थानीय
विकास के जरिये राष्ट्रीय विकास की बात कही थी। ऐसे में राज्यों की
परियोजनाओं को दिल्ली से मंजूरी देने की प्रक्रिया अब बंद होनी चाहिए। मोदी
को मंजूरी और अनुमोदन की प्रक्रिया को विकेंद्रित करना होगा।
रोजगार सृजन:
भारत में हर महीने दस लाख से अधिक युवा रोजगार की कतार में जुड़ जाते हैं।
इसके समाधान का एक ही तरीका है कि राज्यों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा
दिया जाए। भविष्य में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जब राज्य अपनी मासिक,
त्रैमासिक और वार्षिक रिपोर्ट में बताएं कि उन्होंने कितने युवाओं को
रोजगार दिया है।
विकास कोई निरपेक्ष चीज नहीं है। यह आर्थिक निवेश और राजनीतिक दृढ़ संकल्प का प्रतिफल है।
(अर्थशास्त्र की राजनीति के विशेषज्ञ और एक्सीडेंटल इंडिया के लेखक)