मिड डे मील इंचार्ज राजेंद्र सिंह की मानें तो जितना पैसा खाने के लिए मिलता है, उससे विद्यार्थियों को अच्छा खाना परोसा जा सकता है, बशर्ते ऐसा करने की नीयत होनी चाहिए। राजकीय प्राथमिक पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से बेहतर खाना मिलना जरूरी है। इस दौरान बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास होता है।
इसी बात को ध्यान में रखकर धनाना में चल रहे राजकीय प्राथमिक पाठशाला के विद्यार्थियों को घर जैसा खाना परोसा जाता है। ऐसा नहीं है कि स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या कम है, इसलिए इतना बेहतर खाना दिया जाता है।
स्कूल के 225 बच्चों को मिलते हैं 10 प्रकार के व्यंजन
इस समय पाठशाला में 225 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। मिड डे मील के इंचार्ज राजेंद्र सिंह ने बताया कि प्रत्येक बच्चे के लिए तीन रुपये 34 पैसे एक दिन के लिए मिलते हैं। इसके अलावा चावल और गेहूं सरकार की तरफ से मिलते ही हैं। राजेंद्र सिंह ने बताया कि इस समय स्कूल में विद्यार्थियों के लिए 10 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं, इसमें पुलाव, खिचड़ी, कढ़ी-चावल, दाल-चावल, आलू और काले चने की सब्जी व रोटी, काला चना व आटे का हलवा बनाया जाता है। विद्यार्थियों को सप्ताह में एक बार मटर पनीर की सब्जी भी दी जाती है। खाना बनाते समय एक अध्यापक वहीं मौजूद रहता है ताकि किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी न हो।
इस तरह करते हैं मैनेज
बच्चों को मिलने वाली राशि को बड़े ध्यान से खर्च किया जाता है। जब भी मिड डे मील के लिए किसी सामान की जरूरत होती है तो उस ओर से आने-जाने वाले शिक्षक को इसका जिम्मा दे दिया जाता है। इससे इस सामान को लाने पर होने वाला खर्च बच जाता है। वे सब्जियां भी खेत में जाकर सीधे किसानों से खरीदते हैं।
रोज खरीदते हैं 20 से 22 किलो टमाटर
गेहूं-चावल से बने सामानों जैसे खिचड़ी, पुलाव और सिंपल रोटी-सब्जी पर खर्च बहुत कम होता है, जबकि मीठा दलिया, हलवा व मटर पनीर बनाने में खर्चा ज्यादा होता है। इसलिए कम खर्च वाले दिन की राशि ज्यादा खर्च वाले दिन में जुड़ जाती है। बच्चों को सलाद खिलाने के लिए हम हर रोज 20 से 22 किलो टमाटर की कैरेट खरीदते हैं, जो 90 या 100 रुपए में मिल जाती है। चार से पांच किलो टमाटर सब्जी में और बाकी सलाद में प्रयोग की जाती है।
बच्चों को मिलने वाले खर्च में अच्छा खाना दिया जा सकता है, बशर्ते काम करने की नीयत साफ हो।
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