ड्रग ट्रायल करने वाले डॉक्टरों को सिर्फ चेतावनी का ‘डोज ‘

भोपाल मेमोरियल हास्पिटल एवं रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) में भर्ती मरीजों की जिंदगी से खेलने वाली दवा कंपनी व डॉक्टरों को क्लीन चिट मिल गई है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने बहुचर्चित ड्रग ट्रायल मामले में कंपनी व चिकित्सकों को महज चेतावनी देकर छोड़ दिया है। वहीं अस्पताल प्रबंधन को पूरी तरह से क्लीन चिट दे दी गई है। वर्ष 2004 से 2009 के बीच हुए 3 दवाओं के ट्रायल में डीसीजीआई ने जांच के बाद अपनी रिपोर्ट पिछले महीने प्रदेश सरकार को भेजी है।

डीसीजीआई ने क्विनीटाइल रिसर्च (इंडिया) प्राइवेट लि. को बीएमएचआरसी में टेलावैनसिन वर्सेस वैनकोमाइसीन दवाओं के ट्रायल के लिए अनुमति दी थी। तय नियमों के तहत ट्रायल नहीं होने की शिकायत पर सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) की टीम ने 10 से 12 अगस्त 2010 के बीच बीएमएचआरसी में ड्रग ट्रायल मामले की जांच की थी।

जांच में ड्रग ट्रायल में गंभीर अनियमितता मिली थीं। मरीजों को ट्रायल में उपयोग किए जा रहे ड्रग के दुष्प्रभाव के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। उन्हें कोई क्षतिपूर्ति भी नहीं दी गई। इसके बाद डीसीजीआई ने ट्रायल करने वाली कपंनी (प्रिंसपल इन्वेस्टीगेटर) से जवाब तलब किया। इसके बाद भी दवा कंपनी को सिर्फ यह हिदायत देकर छोड़ दिया गया कि वे भविष्य में ड्रग ट्रायल के दौरान कोई गलती व विसंगति नहीं करेंगे।

इसी तरह से क्विनीटाइल रिसर्च (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को बीएमएचआरसी में ही टिजेसाइक्लीन दवा का ट्रायल करने के लिए वर्ष 2006 में अनुमति दी गई थी। इसी साल बीएमएचआरसी की एथिक्स कमेटी ने भी अनुमति दी थी। पेट के संक्रमण के इलाज में इस दवा के उपयोग को लेकर ट्रायल किया जा रहा था। यहां भी मरीजों को धोखे में रखा गया। सीडीएससीओ की टीम ने फरवरी 2011 में इस ट्रायल की जांच की।

इसमें दवा के दुष्प्रभाव के बारे में मरीजों को जानकारी नहीं दी गई थी और न ही उन्हें क्षतिपूर्ति दी गई। इसके बाद डीसीजीआई ने मार्च 2012 में एक चेतावनी पत्र देकर कंपनी को छोड़ दिया। इसके अलावा फांडापैरिनक्स सोडियम दवा का ट्रायल करने के लिए ऑर्गनन इंडिया लिमिटेड को 2004 में बीएमएचआरसी प्रबंधन ने अनुमति दी। बाद में अनुमति सैन्फोई सैंथोलैबो मुंबई को ट्रांसफर कर दी गई। सीडीएससीओ की टीम ने मार्च 2011 में बीएमएचआरसी आकर मामले की जांच की। कंपनी से पूछताछ की गई। बाद में ट्रायल के दौरान सावधानी बरतने की चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।

इंदौर के ट्रायल पर भी कार्रवाई सिर्फ नाम की

इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज और उससे संबंधित महाराजा यशवंत राव हॉस्पिटल में टैडालफिल नामक दवा का पल्मोनरी आट्र्रियल हापइरटेंशन (पीएएच) के लिए ट्रायल किया गया था। डीसीजीआई के निर्देश्ा पर सीडीएससीओ ने जुलाई 2011 में इसकी जांच की तो पता चला कि ट्रायल डॉ. अनिल भराणी और डॉ. आश्ाीष पटेल ने किया था। डीसीजीआई से इसकी अनुमति नहीं ली गई थी। वर्ष 2005 में ट्रायल के दौरान पीएएच के इलाज के लिए इस दवा को मंजूरी नहीं थी। हालांकि, दवा का अन्य बीमारियों में उपयोग की अनुमति थी। इसके बाद डीसीजीआई ने दोनों डॉक्टरों पर छह महीने तक क्लीनिकल ट्रायल करने पर रोक लगादी।

कॉलेज के साइकेट्री विभाग में मानसिक रूप से बीमार मरीजों पर ट्रायल किया गया। सीडीएससीओ ने दिसंबर 2011 में इसकी जांच की। परीक्षण करने वाली कंपनी कैडिला हेल्थ केयर, एक्योर फार्मा और इंटास फार्मास्युटिकल के साथ डॉ. अभय पॉलीवाल, डॉ. उज्जवल सरदेसाई, डॉ. रामगुलाम राजदान और डॉ. पाली देसाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। जांच और ट्रायल करने वालों के स्पष्टीकरण से यह साफ हो गया कि ट्रायल गुड क्लीनिकल प्रैक्टिेसस (जीसीपी) के तहत नहीं किया गया है। इसके बाद भी डीसीजीआई ने सिर्फ सावधानी बरतने की चेतावनी देकर छोड़ दिया।

इंदौर का चाचा नेहरू अस्पताल

इंदौर के ही चाचा नेहरू अस्पताल में डॉ. हेमंत जैन द्वारा कथित तौर पर 1883 बच्चों पर ट्रायल की जांच सीडीएससीओ की टीम ने की थी। यहां पर 26 में से 23 ट्रायल में अनियमितता मिली थी। इसके बाद डीसीजीआई ने डॉ. हेमंत जैन को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। डीसीजीआई ने पिछले साल दिसंबर में डॉ. हेमंत जैन पर तीन महीने कोई भी नया क्लीनिकल ट्रायल करने पर रोक लगा दी। इसी तरह से एमजीएम मेडिकल कॉलेज व एमवाई अस्पताल की एथिक्स कमेटी पर तीन महीने तक नए ट्रायल की अनुमति देने पर रोक लगा दी गई। साथ ही इसमें शामिल करीब आधा दर्जन दवा कंपनियों भविष्य में ऐसी गलती दोबारा नहीं करने की चेतावनी दी गई।

दवा का नाम, उपयोग व साइड इफेक्ट

टिगैसाइक्लीन- इस दवा का उपयोग बैक्टीरिया के संक्रमण में इंजेक्शन के रूप में किया जाता है। इससे सूर्य के प्रकाश के प्रति सेंसिटीविटी बढ़ जाती है। प्रेगनेंसी के दौरान देने से बच्चे पर असर होता है।

टेलएवैनसिन- इसका उपयोग स्किन में बैक्टीरिया के संक्रमण को रोकने के लिए किया जाता है। छोटे साइड इफेक्ट के साथ ही किडनी के लिए यह दवा नुकसानदेह हो सकती है।

-फोंडापैरीनक्स- इसका उपयोग बड़ी हिप व नी सर्जरी में किया जाता है। इसके लेने से मुंह व नाक से खून निकलने व लकवा का खतरा रहता है।

शिकायतें भेज दीं

‘ड्रग ट्रायल के मामले में जांच व कार्रवाई करने के अधिकारी सिर्फ डीसीजीआई को है। लिहाजा इससे संबंधित जितनी शिकायतें विभाग को मिली थीं, उन्हें डीसीजीआई को भेज दिया गया था। हाल ही में डीसीजीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट भेजी है।"

-डॉ. एके श्रीवास्तव, ओएसडी, चिकित्सा शिक्षा संचालनालय

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